शहीद जो आज भी करते हैं सरहदों की रखवाली

सभी जानते हैं कि हमारे जवान किन कठिन हालात में पर्वतीय इलाकों में देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए डटे हुए हैं। देश पर सबकुछ न्यौछावर करने के बुलंद इरादे लिए कुछ सैनिक वहां शहीद हो जाते हैं। ऐसे शहीदों में से कुछ आज भी सरहदों की रखवाली कर रहे हैं। आज तैनात सैनिकों को विश्वास है कि उन शहीदों की आत्मा आज भी सरहदों की रखवाली कर रही हैं। गाहे-बगाहे उनकी अदृश्य ताकत का अनुभव होता रहता है।

जवानों में इसे लेकर अटूट आस्था है। सियाचिन के ओपी बाबा हों, नाथुला के बॉर्डर बाबा या फिर शहीद जसवंत रावत- ये सभी समय-समय पर आने वाली विपत्तियों से उन्हें सचेत करते हैं। यदि इन्हें कोई जवान ड्यूटी में लापरवाही करता नजर आता है तो उसे चपत भी लगाते हैं। इन शहीदों से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां पेश हैं।

सियाचिन के ओपी बाबा

यह बात 1980 के दशक के अंत की है। तोपखाना(आर्टिलरी) के जवान ओम प्रकाश को सियाचिन के उत्तरी हिमनद (ग्लेशियर) स्थित बिला कॉम्प्लेक्स के मलाऊं पोस्ट पर गश्त लगाने के लिए भेजा गया। अचानक वहां पाकिस्तानियों ने हमला बोल दिया।

ओम प्रकाश ने अकेले ही दुश्मन को मार खदेड़ा, लेकिन वापस लौट कर कभी नहीं आए। किसी ने भी न तो कभी उन्हें देखा और न ही उनका शव मिला। इसे एक चमत्कार ही कहा जाएगा कि सैनिकों को सपने में ओम प्रकाश दिखाई देने लगे और वह आने वाली विपत्ति के प्रति पहले ही चेतावनी दे देते।

इससे जवानों के मन में ओम प्रकाश के प्रति श्रद्धा का भाव पैदा हो गया और उनके प्रति विश्वास इतना प्रगाढ़ हो गया कि वह ओम प्रकाश को ‘ओपी बाबा’ के नाम से पुकारने लगे। अब किसी भी अभियान पर निकलने से पहले जवान इसकी सूचना ओपी बाबा को देते हैं।

इतना ही नहीं, लौट कर आने के बाद अभियान की पूरी जानकारी ओपी बाबा को दी जाती है। जवानों का मानना है कि ओपी बाबा भारतीय सैनिकों की न सिर्फ दुश्मन से रक्षा करते हैं, बल्कि कू्रर मौसमी हालात से भी बचाते हैं। सैनिकों का मानना है कि जब भी ओपी बाबा कोई चेतावनी देना चाहते हैं तो वे सपने में आते हैं।

जवान सबेरे ‘बेड टी’ से लेकर भोजन तक में से पहला भोग बाबा को अर्पित करते हैं। सियाचिन पर तैनात होने वाले और तैनाती से लौटने वाले सैनिक बाबा को रिपोर्ट करते हैं। उनके प्रति सैनिकों में अपार श्रद्धा है और सियाचिन जैसे माहौल में ऐसी श्रद्धा सैनिकों का मनोबल बनाए रखती है।

यूं तो सियाचिन की विभिन्न ऊ ंचाइयों पर सैनिकों की तैनाती की जाती है, लेकिन लगभग 22 हजार फीट की सबसे अधिक ऊंचाई पर जिन सैनिकों को 90 दिनों की तैनाती पर भेजा जाता है, वे अपनी तैनाती की अवधि के दौरान सिर्फ शाकाहारी भोजन करते हैं। इस दौरान वे शराब व सिगरेट का सेवन नहीं करते।

सियाचिन पर सभी गतिविधियां ओपी बाबा के समक्ष माथा टेक ने के बाद ही शुरू होती है। ओपी बाबा को सियाचिन में सर्वव्यापी माना जाता है। वहां हर चौकी पर ओपी बाबा का मंदिर है और उनकी पहचान दर्शाने वाला लाल झण्डा लगा होता है।

लगातार 72 घंटे अकेले ही चीनी फौज से लड़ते रहे राइफलमैन जसवंत सिंह रावत

हम आपको ले चलते हैं वर्ष 1962 में भारत चीन युद्ध में। स्‍थान है अरुणाचल प्रदेश की नूरानांग पोस्ट। यहां एक अकेले सैनिक ने 72 घंटे तक चीनी सेना से लोहा लिया। यह सैनिक कोई ओर नहीं, बल्‍कि गढ़वाल राइफल्स के चौथी ब‍टालियान के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत थे। मरणोपरांत उन्‍हें महावीर चक्र से सम्‍मानित किया गया। जिस पोस्ट पर बाबा जसवंत सिंह ने बलिदान दिया, भारत सरकार ने उसे जसवंत गढ़ नाम दिया है।

 

शांति कायम रखने में मददगार हैं बॉर्डर बाबा , भारतीय सीमा की रक्षा करते हैं बाबा हरभजन सिंह

बाबा हरभजन सिंह ऐसे सिपाही थे जिनकी मात्र 22 साल की उम्र में नाथू ला में एक हादसे में जान चली गई थी। भारतीय सैनिकों में बाबा को लेकर बड़ी आस्था है। भारतीय सेना के जवान ड्यूटी जाने के दौरान बाबा के मंदिर में मत्था टेकते हैं। ऐसा माना जाता है कि बाबा जेलेप दर्रे से लेकर नाथू ला दर्रे तक भारतीय सीमा की रक्षा करते हैं। नाथू ला में बाबा हरभजन की याद में दो स्मृति स्थल बने हैं।

अति ऊंचाई पर तैनाती के एक अन्य स्थान नाथुला में भी ‘बॉर्डर बाबा’ की जबर्दस्त मान्यता है। मेजर हरभजन सिंह को इस क्षेत्र में ‘बॉर्डर बाबा’ के नाम से जाना जाता है। बाबा हरभजन सिंह का मंदिर नाथुला और जेलेप-ला के बीच स्थित है। वह  23 पंजाब रेजिमेंट में थे और 1968 में नाथुला (सिक्किम)में तैनाती के दौरान अचानक लापता हो गए। तीन दिन बाद उनका शव मिला और राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया।

बाबा के मंदिर की भी अपनी एक रोचक कहानी है। यहां के लोग कहते हैं कि चार अक्तूबर 1968 को यह सिपाही खच्चरों के एक झुंड को नदी पार कराते समय डूब गया था। कुछ दिनों बाद उसके एक साथी को सपने में हरभजन सिंह(अब बॉर्डर बाबा) ने आकर बताया कि उसके साथ क्या हादसा हुआ था और वह किस तरह बर्फ के ढेर में दब कर मर गया। उसने स्वप्न में उसी जगह अपनी समाधि बनाने की इच्छा जाहिर की। बाद में रेजिमेंट के जवान उस जगह पहुंचे तो उन्हें उसका शव वहीं मिला। तब से वह बाबा हरभजन के नाम से मशहूर हो गया।

हर शाम उनकी वर्दी व जूते ड्यूटी के लिए तैयार किए जाते हैं। वहां तैनात सैनिक बताते हैं कि सुबह बिस्तर पर पड़ी सिलवटें दिखाती हैं कि यहां वाकई कोई सोया होगा। उनके पॉलिश किए गए जूते कीचड़ में सने हुए मिलते हैं। हर साल 14 सितम्बर को बाबा का सामान उनके गांव तक आर्मी वेहिकल से पहुंचाया जाता है। माना जाता है कि बाबा छुट्टियों में घर गए हैं।

आज भी सालों से एक छोटी-सी रकम उनकी मां तक पहुंचाई जाती है। बाबा पर विश्वास करने वाले सिर्फ भारतीय सैनिक ही नहीं हैं, बल्कि फ्लैग मीटिंग के दौरान चीनी सेना भी उनके लिए एक कुर्सी खाली छोड़ती है। दरअसल यहां तैनात सैनिक मानते हैं कि बाबा यहां शांति बनाए रखने में विशेष भूमिका निभाते हैं। फौजी कहते हैं कि आज भी जब चीनी सीमा की तरफ हलचल होती है तो बाबा हरभजन किसी न किसी फौजी के स्वप्न में आकर पहले ही खबर कर देते हैं।  ऐसी कोई भी खबर फौजियों तक कम से कम 72 घंटे पहले मिल जाती है।

हरभजन सिंह हर साल 14 सितम्बर से दो महीने की छुट्टी में घर जाया करता था। इसीलिए आज भी इस दौरान यहां के जवान गश्त और बढ़ा देते हैं, क्योंकि बाबा के छुट्टी पर होने के कारण उनकी भविष्यवाणी उन्हें नहीं मिल पाती। इस मंदिर के सामने से गुजरते वक्त आप इसकी तस्वीर नहीं ले सकते। जो बाबा के दर्शन करने उतरता है, उसे ही तस्वीर खींचने की अनुमति है।

मंदिर के चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है। यहां की खूबसूरत वादियों को देखना सचमुच रोमांचक अनुभव होता है। भोजन में यहां के लोकिप्रय आहार मोमो का स्वाद चखा जा सकता है।

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