क्या छोटे ‘एशिया-प्रशांत नाटो’ की स्थापना की जा सकेगी ?
बीजिंग, 21 अगस्त (आईएएनएस)। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया का पहला शिखर सम्मेलन 19 अगस्त को डेविड शिविर में समाप्त हुआ। तीन देशों के नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन में 17 बार “चीन” का उल्लेख किया।
शिखर सम्मेलन द्वारा जारी किए गए तीन बयान दस्तावेज थाईवान जलडमरुमध्य और दक्षिण चीन सागर जैसे मुद्दों पर अटकलें लगाते हैं, “सुरक्षा चिंता” फैलाते हैं, सभी दलों को “धमकियों का जवाब देने” के लिए उकसाते हैं, और खुले तौर पर चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हैं। इस शिखर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
डेविड कैंप अमेरिका के “मैनर डिप्लोमेसी” के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसने 1959 में अमेरिका-सोवियत संघ की बैठक, 1978 में मिस्र-इजराइल शिखर सम्मेलन और 2000 में फिलिस्तीन-इजराइल वार्ता जैसे ऐतिहासिक घटनाओं को देखा है।
इस बार अमेरिका ने जापान और दक्षिण कोरिया दोनों को यहां से मिलने के लिए खींचा। अमेरिका के इरादे का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। तथाकथित “इंडो -पैसिफिक स्ट्रेटेजी” को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका ने एशिया में एक मिनी नाटो की स्थापना करने की कुचेष्टा की।
मेरिका का मुख्य निशाना कौन है? यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। हाल के वर्षों में, अमेरिका ने गलती से चीन को “सबसे महत्वपूर्ण प्रतियोगियों” के रूप में परिभाषित किया है और व्यापक रूप से चीन के दमन की पूरी कोशिश की है।
शिखर सम्मेलन में पारित “डेविड कैंप स्पिरिट”, “डेविड कैंप सिद्धांत” और “परामर्श प्रतिबद्धता” के तीन दस्तावेजों से भी यह साफ प्रदर्शित होता है।
तो, क्या यह शिखर सम्मेलन वास्तव में मिनी “एशियाई नाटो” बनाने के अमेरिका के लक्ष्य को पूरा करने की मदद कर सकता है?
कुछ विश्लेषकों ने बताया कि अगले साल अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया एक के बाद एक आम चुनाव आयोजित करने के मद्देनज़र, वर्तमान शिखर सम्मेलन एक “राजनीतिक शो” और एक प्रतीकात्मक शपथ की तरह है।
जापान और दक्षिण कोरिया अमेरिका के मित्र देश हैं, लेकिन वास्तव में, उनके पास अपना छोटा अबेकस है।
डेविड कैंप शिखर सम्मेलन शुरू होने से पहले, अमेरिका और जापान ने “इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क” में व्हेलिंग पकड़ने जैसे खंडों पर तर्क दिया और जापानी अधिकारियों ने भी फ्रेमवर्क से हटने की धमकी दी थी।
“शांति संविधान” से छुटकारा पाने के लिए जापान मिनी “एशिया-पैसिफिक नाटो” का उपयोग कर “सैन्य शक्ति” के स्वप्न को साकार करना चाहता है।
लेकिन, जापान को चीन के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंध पर विचार करना होगा। चीन के साथ टकराव से जापान के हितों को भी नुकसान पहुंचाया जाएगा।
दक्षिण कोरिया की सरकार राष्ट्रीय गरिमा की कीमत पर जापान के साथ संबंधों का सुधार करने की कोशिश करती है। हालांकि, दोनों देशों के आम लोगों के बीच अभी भी गंभीर विरोध है। इस मामले में दक्षिण कोरिया और जापान को किस हद तक सहयोग किया जा सकता है?
अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच समस्याएं भी हैं। इससे पहले, अमेरिका द्वारा पारित “चिप एंड वैज्ञानिक कानून” और “मुद्रास्फीति में कमी की विधि” का दक्षिण कोरियाई अर्धचालक और नए ऊर्जा वाहन उद्योगों पर बहुत प्रभाव पड़ा, और ये उद्योग दक्षिण कोरिया के आर्थिक पल्स थे।
क्या अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया विरोधाभासों को ताक पर रखकर सहयोग कर सकते हैं? हमें एक बड़ा प्रश्न चिह्न लगाना चाहिए।
(साभार- चाइन मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
–आईएएनएस