अशोक विश्वविद्यालय विवाद : कई अर्थशास्त्रियों ने सब्यसाची दास के प्रति एकजुटता दिखाई (लीड-1)
नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। हरियाणा स्थित अशोक विश्वविद्यालय ने बीते दिनों सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था। इसके बाद अब तक देशभर के 81 से अधिक संस्थानों के 288 अर्थशास्त्रियों ने उन्हें अपना समर्थन दिया है और विश्वविद्यालय से उन्हें तुरंत बहाल करने का आग्रह किया है।
सब्यसाची के एक शोध पत्र पर राजनीतिक घमासान छिड़ गया, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि 2019 के लोकसभा चुनावों में करीबी मुकाबले वाली संसदीय सीटों पर असंगत तरीके से मत हासिल किए गए थे। इसके बाद विवाद खड़ा हो गया था, जिसके चलते उन्होंने विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया।
बाद में प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने दास का इस्तीफा स्वीकार किये जाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया। अर्थशास्त्रियों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि हम भारत में काम करने वाले अर्थशास्त्री, दृढ़ता से मानते हैं कि शैक्षणिक स्वतंत्रता एक जीवंत शैक्षिक और अनुसंधान समुदाय की आधारशिला है, और हर किसी को सेंसरशिप या प्रतिशोध के डर के बिना ज्ञान प्राप्त करने, अपने निष्कर्ष साझा करने और खुली बातचीत में शामिल होने का अधिकार होना चाहिए।
हम प्रोफेसर सब्यसाची दास के साथ एकजुटता से खड़े हैं और अशोक विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग की मांगों के लिए अपना समर्थन देते हैं। हम अशोक विश्वविद्यालय के गवर्निंग बॉडी से प्रोफेसर दास को बिना शर्त तुरंत बहाल करने का आग्रह करते हैं।
अर्थशास्त्रियों में दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के एजेसी बोस, दिल्ली के भारतीय सांख्यिकी संस्थान से अभिरूप मुखोपाध्याय, जवाहरलाल विश्वविद्यालय से अर्चना प्रसाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान (बेंगलुरु) से अर्पिता चटर्जी और सेंट जेवियर्स यूनिवर्सिटी (कोलकाता) से देबलीना चक्रवर्ती शामिल हैं।
इस बीच, विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन विभाग ने एक बयान में दास और बालाकृष्णन को अपना समर्थन देते हुए कहा, ”हम प्रोफेसर सब्यसाची दास और पुलाप्रे बालाकृष्णन को बिना किसी देरी के अशोक फैकल्टी के रूप में बने रहने के सर्वसम्मति से अनुरोध में अपने सभी सहयोगियों के साथ खड़े हैं।”
हाल की घटनाओं ने एक बार फिर अकादमिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की सुरक्षा पर अशोक विश्वविद्यालय के फैकल्टी और इसके संस्थापकों/गवर्निंग बॉडी के बीच एक कामकाजी फ़ायरवॉल बनाने और सुनिश्चित करने की आवश्यकता को सामने ला दिया है। यह अब प्राथमिकता होनी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि हमारे कई सहयोगियों द्वारा एक सुरक्षित स्थान बनाने के बारे में ठोस सुझाव दिए गए हैं जो शिक्षा जगत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति को फलने-फूलने की अनुमति देता है। हम अत्यधिक संस्थागत प्रतिक्रिया के डर के बिना, कठोर मानकों पर पढ़ने, लिखने, कहने और प्रकाशित करने की शैक्षणिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संस्थागत सुरक्षा उपाय बनाने के प्रयासों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं।
आगे कहा कि हमारा विभाग, मीडिया क्षेत्र में विविध अभ्यासकर्ताओं के एक समूह के रूप में, हमारे डिजिटल रूप से मध्यस्थता, सोशल मीडिया संचालित सूचना परिदृश्य में स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर दबाव की वास्तविकताओं और धारणाओं दोनों से अच्छी तरह से वाकिफ है। हमारा दृढ़ विचार है कि ऐसे दबावों से निपटने के लिए फैकल्टी को शामिल करने वाला परामर्शात्मक दृष्टिकोण ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।
इससे पहले अशोक विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान सहित कई विभागों ने दास के साथ एकजुटता व्यक्त की थी।
–आईएएनएस
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