Wo-Men है…

मर्द हो तो तुम्हारी हस्ती का इतना तो रौब हो…

…बगल से निकले कोई औरत तो वो बेख़ौफ़ हो,

गुलज़ार साब के इन्ही पंक्तियों के साथ सभी पुरुषों को international men’s day की बहुत शुभकामनाएँ!

मर्द!

इस शब्द को ले कर इतने सारे स्टीरियोटाइप हैं, कि क्या कहें, लेकिन आज पुरुषों का दिन है, तो कुछ तो कहेंगे।

दुनिया में जब भी मर्द शब्द का ज़िक्र होता है, तो दिमाग में यही आता है कि लड़के रोते नहीं, मर्द को दर्द नहीं होता, मर्द है तो घर चलाएगा, वगेरा वगेरा।

हमेशा से एक मर्द को यही सिखाया गया है, कि मर्द रोते नहीं है, मर्द स्ट्रोंग होते हैं, मर्द सेंटी नहीं होते, मर्द हो तो किचन में खाना नहीं बना सकते। यहाँ तक कि रंगों को लेकर भी ये विभाजन किया जा चूका है, कि पिंक कलर मर्दों के लिए नहीं होता।

यदि आप मर्द हो तो माचो हो, अँधेरे में डरना नहीं चाहिए, मर्द घर में बच्चे नहीं सँभालते, लेकिन मर्द हो तो जिम्मेदारियों के बोझ तले ज़रूर दबो।

लड़की के लिए कार का दरवाजा खोलो, डेट पर जा रहे हो तो बिल तुम भरो।

क्यूँ? क्युकि तुम मर्द हो।

लेकिन आज इन सब स्टीरियोटाइप से थोडा हट के मर्दों के दुसरे पहलु और सच्चे पहलु को जानने की कोशिश करते हैं। आज इसपर बात करने का यही एक उद्देश्य है कि मर्दों को वो दाएरा मिले जहाँ वो भी रो सके, अपना दर्द बता सकें।

ये बता सके कि अँधेरे में उन्हें भी डर लगता है, कि पिंक कलर वो भी चुन सकते हैं। उनके हाथ में सिर्फ बन्दूक या कार कि स्टेर्रिंग ही नहीं, बल्कि बच्चों का डाईपर या रोटी बनाने का बेलन भी हो सकता है। और ये सब न कोई गुनाह है, नाही इन सब से उनकी मर्दानगी पर कोई सवाल खड़ा होता है। हम मर्दों को इतना बाँध कर न रखे, कि वो अपने आंसू छिपा कर ही रह जाएं, क्यूंकि मर्द भी रोता है, और मर्द को भी दर्द होता है…

 

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