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Ram Mandir में राम लल्ला का बाल स्वरूप ही क्यों किया गया विराजमान? जानें

राम नगरी अयोध्या में 70 सालों के संघर्ष के बाद आखिरकार राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा विधि विधान के साथ हो चुकी है। राम मंदिर के गर्भगृह में राम लल्ला के बाल स्वरूप की प्रतिमा विराजमान की गई है। बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि आखिर राम मंदिर में राम लल्ला के बाल रूप की प्रतिमा ही क्यों विराजमान की गई है। आगे इस आर्टिकल के जरिए इस सवाल का जवाब मिल सकता है।

भारतवासियों को जिस दिन का वर्षों से इंतजार था, वह ऐतिहासिक दिन 22 जनवरी का था। राम नगरी अयोध्या में 70 सालों के संघर्ष के बाद राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा विधि विधान के साथ हो चुकी है। बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि आखिर राम मंदिर में राम लल्ला के बाल रूप की प्रतिमा ही क्यों विराजमान की गई है। आइए पढ़ते है कि राम मंदिर में राम लल्ला के बाल रूप की प्रतिमा क्यों विराजमान की गई है?

राम मंदिर में राम लल्ला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह पूरे पूजा-अनुष्ठान के बाद 22 जनवरी को गर्भगृह में राम लल्ला के बाल स्वरूप की प्रतिमा को विराजमान किया गया है। सबसे पहले प्रतिमा से जुड़ी खास बातें जानते हैं। राम लल्ला  बालस्वरूप में कमल के आसन पर खड़े हुए हैं। जिनके बाएं ओर हनुमान, मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, ऊँ, शेषनाग और सूर्य हैं। जबकि श्री राम के दाएं ओर गदा, स्वास्तिक, हाथ में धनुष, परशुराम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि और गरुड़ है। मूर्ति को मुख्य रूप से मैसूर के अरुण योगीराज द्वारा बनाया गया है। 

बालस्वरूप मूर्ति क्यों स्थापित की गई

बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि आखिर मंदिर के गर्भगृह में पांच वर्ष की मूर्ति की ही स्थापना क्यों की गई है। बता दें कि हिंदू धर्म में बाल्यकाल पांच वर्ष की आयु तक माना जाता है। वहीं, पांच वर्ष की आयु के बाद बोधगम्य शुरू हो जाता है। इसके साथ ही मान्यताओं के मुताबिक, जन्मभूमि में बालस्वरूप में ही उपासना की जाती है।

चाणक्य समेत अन्य विद्वानों ने भी पांच वर्ष की आयु को वह आयु माना है, जब किसी बच्चे को गलती का अहसास नहीं होता है और इसके बाद उसे बोध होना शुरू हो जाता है। चाणक्य नीति में इन दोनों चरणों का कुछ इस तरह से वर्णन किया गया है 

पांच वर्ष लौं लालिये, दस सौं ताड़न देइ। सुतहीं सोलह बरस में, मित्र सरसि गनि लेइ।।

वहीं, काकभुशुंडी ने भी श्री राम के बाल स्वरूप को लेकर वर्णन किया है, जिसमें कहा गया है कि 

तब तब अवधपुरी मैं जाऊं। बालचरित बिलोकि हरषाऊं॥

जन्मोत्सव देखउं जाई। बरष पांच तहं रहउं लोभाई॥

इसके अर्थ की बात करें, तब-तब मैं अवधपुरी जाता हूं, तो उनकी बाल लीलाओं को देखकर खुश हो जाता हूं। वहां जाकर मैं जन्मोत्सव देखता हूं और उनकी लीला के लोभ में पांच वर्ष तक वही रहता हूं।

इसकी एक और वजह यह भी हो सकती है कि भगवान राम की आयु 100 वर्ष बीत जाने के बाद एक साल पूरा होती है।बाबरी मस्जिद को जब ध्वस्त किया गया था। उस दौरान जब मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा विराजमान थी वह बाल रूप में थी। बाबरी मस्जिद को 1828 में जब ध्वस्त किया गया और वर्तमान वर्ष 2024 को अगर देखा जाए तो पांच सौ साल बीत चुके हैं। हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार सौ साल बीत जाने के बाद भगवान की एक साल उम्र बढ़ती है। इस हिसाब से भगवान राम की उम्र पांच साल हो चुकी है। इसके कारण राम मंदिर में भगवान राम के बाल स्वरूप की प्रतिमा विराजमान की गई है।

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