उत्तरकाशी में दृष्टि दिव्यांग बच्चे क्यों धरना देने को मजबूर ?
- उत्तरकाशी में दृष्टि दिव्यांग बच्चे क्यों धरना देने को मजबूर ?
- अनुदान बंद होने से उत्तरकाशी में दृष्टिबाधितों के लिए स्कूल चलना हुआ मुश्किल
उत्तरकाशी। नौगांव तुनालका स्थित विजय दृष्टिबाधित स्कूल के दिव्यांग बच्चे धरना देने को मजबूर हैं। इस संस्थान को राष्ट्रीय दृष्टि बधितार्थ संस्थान के माध्यम से मिलने वाला अनुदान बंद होने से इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और भरण-पोषण का संकट पैदा हो गया है। अपनी मुश्किलों को पीछे छोड़ आगे बढ़ने का सपना देख रहे बच्चों की आँखों में आंसू छलक रहे हैं, लेकिन ना तो देहरादून स्थित संस्थान, ना राज्य सरकार और ना ही केंद्र सरकार ने इन बच्चों की सुध ली है। इस स्कूल व छात्रावास में उत्तरकाशी और टिहरी जिले के करीब 50 बच्चे पढ़ते हैं। मजबूरन स्कूल प्रबंधन के साथ छात्रों को आंदोलन की राह पकड़नी पड़ी है।
विजय दृष्टिबाधित स्कूल की संचालिका विजय लक्ष्मी जोशी का कहना है कि वर्तमान में हम आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। स्कूल को 50 दृष्टि दिव्यांगो के लिए केंद्र सरकार की ओर से देहरादून स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट फ़ॉर द एम्पोवेर्मेंट ऑफ पर्सन्स विद विजुअल डिसएबिलिटी (NIEPVD) के माध्यम से अनुदान मिलता था जो अप्रैल 2021 से बंद हो गया। इसका कारण 10 बच्चों की आयु सीमा मानकों से अधिक होना बताया गया। जिसकी वजह से बच्चों की पढ़ाई, भोजन, और कर्मचारियों की तनख्वाह का संकट पैदा हो गया है।
इस समस्या को देखते हुए मुख्यमंत्री राहत कोष से एक लाख की सहायता मिली थी और स्थानीय लोगों ने भी 4 लाख की मदद की थी। वहीं बाजार से और अन्य लोगों से मदद लेते हुए उन पर लगभग 16 लाख का कर्ज भी हो गया है। अब दुकानदारों ने सामान देने से मना कर दिया है। आगे कैसे व्यवस्था होगी, स्कूल संचालकों को यही चिंता सता रही है। उनकी मांग की है कि जब तक केंद्र से सहायता नही मिलती तब तक राज्य सरकार उनकी मदद करे। जब तक उनको मदद नहीं मिलेगी तब तक वे अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे।
स्कूल में 8वीं कक्षा की छात्रा प्रियंका का कहना है कि अगर यह स्कूल ही बंद हो गया तो हम नेत्रहीन बच्चे कहाँ जाएंगे। कैसे हम अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे और कैसे अपने सपने पूरे कर सकेंगे। हम आंखों से देख नही सकते, लेकिन समझते सब कुछ हैं। अगर सरकार हम दिव्यांगों की मदद करे तो हमें पढ़ने और आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। अपने घर की दयनीय हालत और स्कूल में उपजी समस्या के बारे में बताते हुए प्रियंका अचानक रो पडी। कहती है कि घर मे भी माँ के अलावा कोई नहीं है और वह भी दूसरों के खेतों में मजदूरी कर घर चला रही हैं।
इस पूरे प्रकरण में सवाल उठता है कि अगर 10 बच्चे ओवर ऐज हो गए हैं तो बाकी 40 बच्चों की जिम्मेदारी से केंद्र सरकार और राष्ट्रीय संस्थान पल्ला कैसे झाड़ सकते हैं?