राजस्थान के ग्राम सांकड़दा को लोग “कबूतरों के गांव के नाम से क्यों जानते है देखे पूरी कहनी-?
संवाददाता-मनोज कश्यप
आप सभी लोगों ने कबूतरों से जुड़ी हुई कहानी ओर गीत बहुत सुने होंगे। लेकिन क्या कभी आप लोगों ने सोचा है कि इस चकाचौंध दुनिया में कबूतर या अन्य किसी भी पक्षी का जीना कितना मुहाल हो गया । शहरों के साथ अब गाँव के लोगों का भी रहन सहन का तरीका बदल रहा है। क्या आप लोगों ने कभी सोचा है कि जब अब से 20 से 25 साल पहले लोगों के मिट्टी के मकान हुआ करते थे उन मकानों में कबूतर चिड़िया इत्यादि पक्षी भी अपना घर बना कर रहते थे लेकिन धीरे धीरे लोगों ने अपना लाइफ स्टाइल बदल दिया है जिस कारण धीरे-धीरे जैसे बनो कबूतर जैसे पक्षी दुनिया से गायब हो गए हैं ।
आइए बात करते हैं उस गांव की जिसको कबूतरों के गांव के नाम से जाना जाता है।राजस्थान के बूंदी जिले में सांकड़दा गांव में लगभग 100 मकान है। लेकिन यह गांव कबूतर जैसे पक्षियों के प्रति प्रेम की एक मिसाल बना हुआ है क्योंकि इस गांव में पक्षियों के प्रति लोगों का प्यार एक अलग ही रूप में देखने को मिलता है। गांव से प्राप्त जानकारी के अनुसार अब से लगभग 100 साल से भी अधिक सालों पुरानी बावड़ी(बावड़ी या बावली उन सीढ़ीदार कुँओं , तालाबों या कुण्डो को कहते हैं जिन के जल तक सीढ़ियों के सहारे आसानी से पहुँचा जा सकता है।) में कभी के समय में लगभग 20 या 30 को कबूतरों का बसेरा था। बीते सालों पहले जब बावड़ी को सीमेंट प्लास्टर इत्यादि से सजाया गया तो कबूतरों के घर भी उजड़ गए जिस कारण कबूतरों को इधर-उधर असुरक्षित जगहों पर अपना आशियाना बनाना पड़ा। कबूतरों का आशियाना असुरक्षित होने के कारण कबूतर के अंडे ओर कबूतरों को बिल्ली और सांप जैसे शिकारी अपना शिकार बना लेते हैं। धीरे-धीरे करके गाँव का लाइफस्टाइल बदलता गया ओर कबूतरों के आशियाने उजड़े गए। कबूतरों के आशियाने उजाड़ने से कबूतरों की आबादी भी खत्म होने लगी थी जिसको देखकर गांव वालों की परेशानियां बढ़ रही थी।कबूतरों की आबादी कम होते हुए देख गांव के एक बुजुर्ग ने सभी ग्राम वासियों को एक सुझाव देते हुए कहा कि मैंने एक आश्रम में चिड़िया कबूतर व अन्य पक्षियों के लिए पेड़ पर कुछ प्लास्टिक के डिब्बे बांधे हुए थे जिसमें पक्षी निवास करते थे। वह देखने में जितने सुंदर थे पक्षियों के लिए उतने ही सुरक्षित भी लग रहे थे। गांव के इस बुजुर्ग की बात सभी ग्राम वासियों की समझ में आ गई और सभी लोगों ने अपने-अपने घरों से लोहे व प्लास्टिक के डब्बे पक्षियों के आकार में काट कर शोल्डर बना दिया। फिर सभी गांव वालों ने मिलकर गांव की चौपाल पर तार से बांधकर डब्बू को किसी माला की तरह सजा दिया उसके बाद गांव में जिस किसी व्यक्ति के यहां पर शादी विवाह जैसे आयोजन में घरों में आने वाले सामानों के प्लास्टिक के डिब्बे खाली करके बेचने की वजह उनका कबूतरों के लिए आशियाना बनाने के लिए देने लगे। ऐसा करने से गांव में कबूतरों के लिए आसियान ओं की संख्या बढ़ती गई इन आशियाना में कबूतर भी निवास करने लगे जिनको देखकर गांव वालों में खुशी का माहौल दिखाई देने लगा इतना ही नहीं ग्राम वासियों के द्वारा कबूतरों के लिए दाने पानी की भी व्यवस्था कर देते थे। हैरान कर देने वाली बात तो यह थी जहां गांव में मात्र 20 -25 कबूतर बचे थे वहां अब 500 से अधिक कबूतर आवास कर रहे हैं। इतना ही नहीं गांव वालों ने कबूतरों को बिल्ली सांप आदि शिकारियों से बचाने के लिए कबूतरों के आशियानो के नीचे लोहे की जाली लगाकर और भी सुरक्षित कर दिया है।
राजस्थान के सांकड़दा गांव में पहली बार जाने वाला कोई भी व्यक्ति हो जाता है हैरानअब राजस्थान के सांकड़दा गांव जो भी बाहरी व्यक्ति पहली बार जाता है। वह कबूतरों के इतने आशियाने देखकर हैरान हो जाता है लेकिन जब इन व्यक्तियों को इसके पीछे का राज पता चलता है तो वह सभी गांव वालों की बहुत प्रशंसा कहते हैं इतना ही नहीं बाहर से आए व्यक्ति कबूतरों के इन आशियाना के साथ में सेल्फी लेते ओर फोटो खींचते हुए भी दिखाई देते हैं। जब सोशल मीडिया के माध्यम से यह फोटो और वीडियो लोगों को प्राप्त होते हैं तो राजस्थान के अन्य गांव से भी लोग सांकड़दा गांव में आकर इस दृश्य को देखते हैं गांव वालों का पक्षियों के प्रति इतना प्रेम देखकर हैरान रह जाते हैं। इस गांव की स्त्री बड़ी बात यह है कि यह गांव एक आदर्श गांव के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यहां के लोग अपने गांव में शराब की दुकान नहीं खुलने देते। इस गांव में एक भी व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक स्थान पर बीड़ी सिगरेट का सेवन नहीं करता और यहां के लोग अपने समय को बिल्कुल भी बर्बाद नहीं करते ऐसे खेल जो समय को बर्बाद करते हैं उनकी जगह यहां के निवासी कसरत वाले वाले खेल खेलते हैं।