जब-जब उत्तराखंड आए बापू
साल 1921 में जब महात्मा गांधी कुमांऊ दौरे पर थे तो वे सभा को संबोधित कर रहे थे । चंद्रसिंह गढवाली भी वहां मौजूद थे उन्होने वहां अपनी प्रिय गोरखा टोपी थी । महात्मा गांधी ने उन्हें देखकर कहा- ये कौन है जो मुझे गोरखा हैट पहनकर डराने आया है, चंद्रसिंह तुरंत खड़े उठे और कहा की सफेद टोपी मिले तो वो भी पहन लूंगा । ये सुनते ही सभा में मौजूद किसी ने चंद्रसिंह की तरफ सफेद टोपी उछाली, चंद्रसिंह ने वही सफेद टोपी गांधी जी की ओर उछालते हुए कहा- अगर ये बुड्ढा अपने हाथों से पहनाएगा तभी पहनूंगा । गांधी जी चंद्रसिंह की ओर बढे उन्हें सफेद टोपी पहनाई ।
ये किस्सा महात्मा गांधी की उत्तराखंड यात्राओं के सबसे प्रचलित किस्सों में से एक है।
आज़ादी की लड़ाई के दौर में महात्मा गांधी को देश के नायक के रूप में देखा जाने लगा, महात्मा गांधी में लोगों को एक उम्मीद दिखती थी । उम्मीद- आज़ादी की,
और आजादी की इस उम्मीद को न सिर्फ जीवित बल्कि एक प्रचंड ज्वाला का स्वरूप देने के लिए महात्मा गांधी ने कई बार उत्तराखंड की यात्राएं की, और इन यात्राओं के माध्यम से उत्तराखंड वासियों के दिलों में देशप्रेम की अलख जगाई ।
और आज हम जानेंगे महात्मा गांधी की उत्तराखंड यात्राओं के बारे में-
साल 1915 में हरिद्वार में महाकुंभ लगा था । हज़ारो की संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार आए थे। वे गंगा नदी में डुबकी लगा रहे थे । आज कल की तरह उन दिनों भी देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु भारत में महाकुंभ देखने आते थे। क्योंकि उस वक़्त में भारत अंग्रेजों का गुलाम था इसलिए ब्रिटिशर्स को भारत में आना और भी आसान था।
तो अप्रैल 1915 में महात्मा गांधी हरिद्वार आए, हरिद्वार से वे ऋषिकेश और स्वर्गाश्रम भी गए। ये महात्मा गांधी की पहली उत्तराखंड यात्रा थी। वे उत्तराखंड से इतने प्रभावित हुए की अगले ही साल 1916 में फिर से उत्तराखंड आए और स्वामी श्रद्धानंद के विशेष आग्रह पर गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में अभिभाषण दिया।
इस दौरान महात्मा गांधी से लोग बेहद प्रभावित हुए खासकर युवाओं पर गाँधीजी ने अपने व्यक्तिव की अमिट छाप छोड़ दी । उत्तराखंड में भी स्वतंत्रता आंदोलन के लिए कई संगठन बने।
इसके बाद महात्मा गांधी की छोटी-छोटी उत्तराखंड यात्राएं होती रहीं। वर्ष 1921 में महात्मा गांधी ने कुमाऊं मंडल का रुख किया जहां सभा को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी से वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की भेंट हुई। जो किस्सा हमने आपको शुरू में सुनाया।
इसी वर्ष महात्मा गांधी ने ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय खोला ।
उत्तराखंड में भी अबतक हज़ारों आंदोलनकारी तैयार खड़े हो चुके थे जो स्वतंत्रता आंदोलनों में अपनी सहभागिता दे रहे थे।
जून 1929 में महात्मा गांधी का स्वास्थ्य खराब हुआ और स्वास्थ्य में सुधार के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर उन्होंने अहमदाबाद छोड़कर हल्द्वानी के एक अस्पताल का रुख किया। जहां खराब स्वास्थ्य के बाद भी उन्होंने हल्द्वानी में कई जन सभाओं में हिस्सा लिया और अपने बेबाक विचारों को जनता के सामने रखा।
हल्द्वानी के बाद वे नैनीताल गए, जहां पहाड़ की समस्याओं और गरीबी पर अपने विचार व्यक्त किए। इसके बाद वे नैनीताल के ताकुला गांव पहुंचे जहां उन्होंने गांधी मंदिर का शिलान्यास किया।
इसी दिन उन्होंने भवाली में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया और भवाली के नगरवासियों ने उन्हें मानपत्र भेंट किया. (मानपत्र यानी एक प्रकार का सम्मानपत्र)।
16 जून 1929 को गांधीजी खैरना होते हुए ताड़ीखेत पंहुचे जहां उन्होंने 1921 के असहयोग आन्दोलन के दौरान खोले गये प्रेम विद्यालय के वार्षिकोत्सव में भाग लिया और एक सार्वजनिक सभा में स्थानीय ग्रामीणों को स्वार्थ परायणता और आंचलिक संकीर्णता से उपर उठ कर राष्ट्र प्रेम की भावना ग्रहण करने का संदेश दिया।
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18 जून 1929 को महात्मा गांधी अल्मोड़ा पहुंचे जहां उन्होंने चैघान पाटा पार्क में एक विशाल जनसभा को संबोधित किया।
बताया जाता है कि तत्कालीन म्यूनिसिपल बोर्ड के ब्रिटिश चेयरमैन मिस्टर ओकले ने उनके सम्मान में हिन्दी में मानपत्र पढ़ा. अगले दिन उन्होंने रामजे कालेज, शुद्ध साहित्य समिति व भारतीय मसीही केन्द्र के साथ-साथ महिला सभा व मल्ली बाजार में आयोजित सभाओं को सम्बोधित किया ।
22 जून 1929 को महात्मा गांधी कौसानी पहुंचे। इसके बाद गरुड़ से बागेश्वर तक महात्मा गांधी ने पैदल यात्रा की। बागेश्वर में गाँधीजी ने स्वराज्य मंदिर का शिलान्यास किया।
2 जुलाई 1929 को महात्मा गांधी दिल्ली चले गए।
इसके बाद इसी वर्ष सितम्बर में गांधी जी फिर उत्तराखंड आए और देहरादून और मसूरी की यात्रा की । आज़ादी के साथ महात्मा गांधी ने पहाड़ की समस्याओं को भी बड़े मंचों से आवाज़ दी। 18 जून 1931 में गांधी जी नैनीताल आए जहां उन्होंने 5 दिन प्रवास किया, मंचों से पहाड़ की एकता का आह्वान किया और स्वतंत्रता आंदोलन की मुहिम को आगे बढ़ाया।
इसके बाद महात्मा गांधी की अंतिम उत्तराखंड यात्रा साल 1946 में हुई। वे मसूरी आए और 8 दिन तक मसूरी में रहे। अबतक देश में आज़ादी की लड़ाई अपने चरम पर पहुंच गई थी । अपने 8 दिवसीय दौरे पर गाँधीजी ने उत्तराखंड में आज़ादी के कई आंदोलनों में भाग लिया और पहाड़ की समस्याओं को भी उतनी ही संजीदगी से उठाया।