धामी जी, प्रेमचंद अग्रवाल को बर्खास्त करने के लिए किस ‘मुहूर्त’ का इंतजार कर रहे हैं ?

विधानसभा में हुई अवैध नियुक्तियों की ‘असलियत’ उजागर होने के साथ ही वर्तमान कैबिनेट मंत्री और पिछली सरकार के कार्यकाल में स्पीकर रहे प्रेमचंद अग्रवाल की ‘ईमानदारी’ और संवौधानिक प्रतिबद्धता का नकाब भी उतर गया है।

यूं तो, उनके कार्यकाल में हुई 72 नियुक्तियों के नियम विरुद्ध होने को लेकर किसी को भी संदेह नहीं था, लेकिन अब इस फर्जीवाड़े पर मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी द्वारा गठित जांच कमेटी ने मुहर लगा दी है।

जैसे ही विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई सभी 72 नियुक्तियों के साथ ही 2012 से 2022 तक हुई 228 नियुक्तियों को (जांच कमेटी की सिफारिश पर) रद्द करने का एलान किया, उसने प्रदेश के सर्वोच्च सदन, विधानसभा के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार पर सरकारी मुहर लगा दी।

जांच कमेटी की रिपोर्ट से साफ हो गया है कि राज्य बनने के बाद उत्तराखंड विधानसभा में सर्वोच्च पद पर आसीन ‘महानुभावों’ ने नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाने और नैतिकता को कूड़ेदान में डालने का अपराध किया है।

यानी, जिन्हें इस सदन की आन,बान और शान की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई, उन्होंने ही इसकी गरिमा को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

उत्तराखंड विधानसभा भर्ती घोटाला

2012 से 2017 तक स्पीकर रहे कांग्रेसी, गोविंद सिंह कुंजवाल और उसके बाद 2017 से 2022 तक यह जिम्मेदारी निभाने वाले भाजपाई, प्रेमचंद अग्रवाल की करतूतों ने विधानसभा अध्यक्ष जैसे गरिमामय पद की प्रतिष्ठा को ऐसी चोट पहुंचाई है, जिसके निशान हमेशा बने रहेंगे।

ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि विधानसभा अध्यक्ष जैसे पद की गरिमा को तार-तार करने वाले इन नेताओं के खिलाफ एक्शन कब होगा ?

एक्शन की यदि बात करें तो ऋतु खंडूरी द्वारा इन भर्तियों को रद्द किए जाने के एलान के बाद अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की असल परीक्षा है।

ऋतु खंडूरी द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट में प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई सभी 72 भर्तियों के अवैध पाए जाने के बाद, जब उनकी ‘ईमानदारी’ का चोला उतर चुका है, तब उन्हें अपनी कैबिनेट से बाहर करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी किस मुहूर्त का इंतजार कर रहे हैं ?

गौर करने वाली बात यह है कि प्रेमचंद अद्रवाल धामी कैबिनेट में किसी छोटे-मोटे नहीं बल्कि संसदीय कार्य और वित्त जैसे अहम विभागों के मंत्री हैं। ऐसे में आज हुए खुलासे के बाद क्या सीएम धामी को उन्हें तत्काल मंत्रिमंडल से बर्खास्त नहीं कर देना चाहिए ?

इतना ही नहीं, प्रेमचंद अग्रवाल को मंत्रिपद से हटाने के बाद क्या सरकार को उनके और उनसे पहले स्पीकर रहे गोविंद सिंह कुंजवाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए ?

याद कीजिए, विधानसभा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी का मामला तूल पकड़ने के बाद सीएम धामी ने जब स्पीकर ऋतु खंडूरी से जांच का आग्रह किया था तो तब उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़े एक्शन की बात भी कही थी। अब जब कड़े एक्शन का वक्त आ गया है तो धामी को बिना समय गंवाए बड़ी लकीर खींच देनी चाहिए।

उत्तराखंड विधानसभा भर्ती घोटाला
सवाल यह है कि क्या धामी को अब भी प्रेमचंद अग्रवाल के ईमानदार होने और उनके द्वारा की गई नियुक्तियों के पाक-साफ होने का भरोसा है ? या फिर वे इस उम्मीद में हैं कि प्रेमचंद अग्रवाल खुद जर्मनी से उन्हें इस्तीफा फैक्स कर महान त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करेंगे ?

और यदि किसी दवाब के चलते प्रेमचंद अग्रवाल खुद इस्तीफा दे देते हैं तो क्या तब धामी खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस अपनाने वाला मुख्यमंत्री कह पाएंगे ?

नैतिकता की बात करें तो विधानसभा में हुई अवैध नियुक्तियों में हाथ काले करवा चुके प्रेमचंद अग्रवाल कैबिनेट मंत्री पद पर बने रहने का अधिकार खो चुके हैं। उनका मंत्री पद से पैदल होना भी तय है। देखना बाकी है कि वे खुद इस्तीफा देते हैं या हटाए जाते हैं।

इस सबमें जितना ज्यादा वक्त लगेगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के दावे की ‘असलियत’ उतनी ज्यादा उजागर होती रहेगी।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button