प्रदेश में मूल-निवास 1950 कानून और प्रदेश में सशक्त भू-कानून लागू किए जाने जैसे तमाम बड़े मुद्दों को लेकर देहरादून में महारैली का आयोजन किया गया। उत्तराखंड मूल निवास स्वाभिमान महारैली में बड़ी संख्या में युवाओं, सामाजिक, राजनैतिक और आमजन ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। यह महारैली उत्तराखंड की जनता की अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई के लिए थी।
महारैली में पहुंचे लोगों ने अपने दर्द बयां करते हुए कहा कि उनकी कई पुश्तें यहां पर रह रही हैं। इसके बाद भी हमको मूल निवास नहीं मिल रहा है। हमारे बच्चे अपने अधिकार से वंचित हो रहे हैं। अपने ही राज्य में हमारी पहचान का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में वह कैसे सुरक्षित रह सकते हैं।
महिलाओं ने कहा कि उनके बच्चों का भविष्य अधर में दिखाई दे रहा है। बच्चों के सामने नौकरी का संकट खड़ा हो रहा है। उनका बस यही कहना है कि उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें। इसलिए राज्य में भू-कानून, मूल निवास 1950 और धारा 371 का कानून लाना जरूरी हो गया है।
मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि हम सरकार की इस पहल और सक्रियता का सम्मान करते हैं, लेकिन यह जन आंदोलन है, जिसका नेतृत्व उत्तराखंड की आम जनता कर रही है। इसलिए इस आंदोलन से संबंधित कोई भी फैसला आम जनता के बीच से ही निकलेगा।
मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति की कई मांगे है जिनमें :
– प्रदेश में ठोस भू कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
– ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।