मसूरी का मॉल रोड हुआ करता था उत्तराखंड की शान
अक्सर हम हर हिल स्टेशन के पास एक बाजार देखते हैं, जिसको मॉल रोड के नाम से जाना जाता है। और ऐसा ही एक मॉल रोड हैं खुबसूरत वादियों से घिरी पहाड़ों की रानी मसूरी में। जहाँ दूर दूर से पर्यटक आकर शॉपिंग करते हैं, और यहाँ कि खुबसूरत पहाड़ों का आनंद लेते हैं। मसूरी की विश्व विख्यात मॉल रोड पहले के समय में उत्तराखंड की शान हुआ करती थी। जोकि आज बदरंग होती नजर आ रही है। आज मॉल रोड अतिक्रमण की जद में आ गयी है। यहाँ तक कि यहाँ पैदल चलना भी दूभर हो गया है।
बात अगर इसके इतिहास की करें तो मसूरी की माल रोड का अपना अलग इतिहास है। इस मालरोड का निर्माण करीब 1830 के आसपास हुआ था। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि शहर की मालरोड का अपना ही इतिहास रहा है। माल रोड में चलने के लिए देश की नामचीन हस्तियों ने कायदे कानून का पालन किया था। यहां तक कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, दलाई लामा और अटल बिहारी वाजपेयी सहित टिहरी के महाराजा प्रताप शाह सहित कई दिग्गज नियम कानूनों के साथ इस मालरोड का भ्रमण कर चुके हैं।
आपको बता दें कि 1907 में पालिका के संशोधित एक्ट में माल रोड में गंदगी, कचरा फैलाने पर 80 रुपये का जुर्माना और फूल तोड़ने पर 40 रुपये का जुर्माना था। मालरोड में वाहनों की संख्या को कम करने के लिए नगर पालिका ने मालरोड में शुल्क का प्रावधान भी किया। और इसके बाद 1970-72 में माल रोड का प्रवेश शुल्क 10 रुपये था। फिर 1988 में 20 रुपये और वर्तमान में दोनों बैरियरों का शुल्क बढ़ाकर वाहनों के हिसाब से 100 से 300 तक कर दिया गया है। इसके बावजूद भी माल रोड में वाहनों की संख्या कम नहीं हुई। और बड़ी संख्या में 12 महीने सैलानियों की भीड़ देखी जाती है।