उत्तराखंड

Uttarakhand State Protest में पुलिस ने ऐसे की थी आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता

आज का दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री की जयंती को लेकर जाना जाता है। लेकिन आज के दिन का संबंध 1994 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों से भी है।

किसी भी नए राज्य को बनाने के लिए ठोस कारण की जरूरत होती है। साथ ही नए राज्य बनने की प्रक्रिया में सबसे बड़ा योगदान उस राज्य की अलग मांग करने वाले आंदोलनकारियों का होता है। लेकिन सिर्फ मांग से कुछ नहीं होता है। मांग के साथ- साथ दशकों का अथक प्रयास और हृदय की ज्वाला भी जरूरी है।

उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों को सदा से ही सरकारी दृष्टिकोण से नकारा गया था। क्योंकि न तो लोगों के लिए सही से सड़क बनी थी, ना अस्पताल और ना ही बुनियादी सुख सुविधाएं थी। उत्तराखंड(uttarakhand protest) बनने की दास्तान भी कुछ ऐसे ही लिखी गई थी। सभी लोग उत्तर प्रदेश से अलग होना चाहते थे। इसके पीछे का कारण था उत्तर प्रदेश की सरकार का पहाड़ी राज्यों पर ध्यान नहीं देना। इसलिए पहाड़ी लोगों का सपना था कि पहाड़ का एक अलग राज्य बने और उस राज्य की राजधानी भी पहाड़ में ही रहे और उन्हीं सपनों को साकार करने के लिए उत्तराखंड राज्य आंदोलन(uttarakhand history) शुरू हुआ था।

2 अक्टूबर 1994 को आंदोलन ने पकड़ी गति

यह आंदोलन को शुरू हुए दस साल हो गए थे। लेकिन आंदोलन ने गति 2 अक्टूबर 1994 के मुजफ्फरनगर दंगों से पकड़ी थी। आज का दिन देश के लिए खुशी का दिन होगा क्योंकि आज महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती है। लेकिन यह दिन उत्तराखंड वासियों के लिए काला दिन है।

घटना से जुड़ा पूरा घटनाक्रम

  • यह पूरा घटनाक्रम 1 अक्टूबर 1994 की रात से जुड़ा हुआ है। उस दिन सभी आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे। राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग अलग जगहों से सैकड़ों बसों में सवार होकर 1 अक्टूबर को रवाना हुए थे।
  • देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही उनको रोकने की कोशिश की जाने लगी थी। इस दौरान पुलिस ने गोरखी के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकाबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का ये हुजूम दिल्ली के लिए रवाना हो गया।
  • लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर दिया। आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में तो रोक लिया, लेकिन आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए।
  • इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की थोड़ी सी नोकझोंक शुरू हुई और इसी बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक पथराव शुरू हो गया।
  • जिसके बाद यूं तो यूपी पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा दौड़ाकर पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई 100 से ज्यादा आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया गया।
  • उस रात कुछ ऐसा हुआ जिसने पहाड़ की महिलाओं की अस्मिता को तार तार कर दिया। आंदोलनकारी महिलाओं को बालों से खींच खींचकर गन्ने के खेतों में ले जाया गया और सत्तासीन सफेदपोश सिस्टम के अधिकारियों ने महिलाओं के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दिया था।
  • ये दर्दनाक घटना यहीं नहीं थमी ,देर रात लगभग पौने 03:00 बजे सूचना आई कि सैकड़ों बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में खबर मिलते ही रामपुर तिराहे पर एक बार फिर से भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया था।
  • जब पुलिस और राज्य आंदोलनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई। इस दौरान आंदोलनकारियों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें सात आंदोलनकारियों की जान चली गई और 17 से ज्यादा पुलिसवालों पर रेप, डकैती, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ जैसे मामले दर्ज हुए थे।
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