तो इस वजह से हुई थी कालिका मंदिर की स्थापना

अगर आप भी धार्मिक स्थलों कि यात्रा करने के सौकीन हैं तो आज हम आपको उत्तराखंड स्थित देहरादून के कालिका मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जिस मंदिर कि कई मान्यताएं हैं। इस मंदिर के अगर इतिहास की बात करें तो 58 वर्ष पहले बालयोगी महाराज के निर्देश पर यहां एक छोटा सा मंदिर बनाया गया था, जिसमें 11 मई, 1954 को मां भगवती की अखंड ज्योत जलाई गई थी।

और तब से ही ये अखंड ज्योति निरंतर जल रही है। इस मंदिर का यज्ञ कुंड भी आज तक लगातार जलता आ रहा है। यहाँ  समय-समय पर मंदिर समिति द्वारा कई तरह के लोकहित कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं।

कालिका मंदिर के पुजारी हरीश भाटिया की माने तो बालयोगी महाराज को सपना आया था, कि उन्हें इस मंदिर में काली मां की मूर्ति स्थापित करनी है, जो जयपुर में है। फिर क्या था, वह जयपुर गए और पूरे बाजार में काली मां के उस स्वरूप को ढूंढा, जो उन्हें सपने में नजर आया था। तब उन्हें पूरे बाजार में माता का वैसा स्वरूप नहीं मिला।

जिसके बाद एक छोटी सी बच्ची आई और महाराज जी का हाथ पकड़कर एक दुकान के बाहर उन्हें लेकर गई। और उसके बाद वह बच्ची वहां से ओझल हो गई। महाराज दुकान में गए और उन्होंने दुकानदार से काली मां के उस स्वरूप का जिक्र किया, तो उन्हें वह प्रतिमा मिल गई। जिसके बाद वह इसे यहां लेकर आए और प्राण प्रतिष्ठित किया। हर साल नवरात्री में इस मंदिर में भक्तों कि भारी भीड़ उमड़ती है।

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