Electoral Bonds को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए कही बड़ी बात
चुनावी बॉन्ड योजना पर फैसला सुनाने हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ी बात कही है। पारदर्शिता कहकर स्कीम को शुरू करने के केंद्र सरकार के मत के विपरीत होकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक और काले धन को रोकने के प्रयास में अनुचित बताया है।
Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने आज चुनावी बॉन्ड पर दायर की गई याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है। इस फैसले से केंद्र सरकार और अन्य पार्टियों को बड़ा झटका लगा है। बता दे कि चुनावी बॉन्ड योजना दानदाताओं को भारतीय स्टेट बैंक से धारक बॉन्ड खरीदने के बाद गुमनाम तरीके से किसी राजनीतिक दल को धन भेजने की अनुमति देती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र सरकार को लगा झटका
सुप्रीम कोर्ट ने आज चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है। कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत चार लोगों ने योजना के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की थी।
पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से इस योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को रद्द कर दिया है।
अनुच्छेद 19(1)(ए) के खिलाफ थी योजना
न्यायालय ने माना कि चुनावी बॉन्ड योजना अपनी गुमनाम प्रकृति के कारण सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर प्रहार करती है। “चुनावी बॉन्ड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है,” फैसले में कहा गया।
सभी पार्टी को फंडिंग वापस देने के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम से सभी पार्टियों को मिली फंडिंग वापस देने के आदेश दिए है। 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक जितने भी लोगों ने चुनावी बॉन्ड खरीदे है और कितनी रकम फंडिंग में दी है। इसकी जानकारी स्टेट बैंक आफ इंडिया को देनी होगी। भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने(रकम खुदरा करवाना) के लिए अधिकृत किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले यह जानकारी स्टेट बैंक की ओर से चुनाव आयोग को दी जाएगी। इसके बाद चुनाव आयोग यह जानकारी जनता तक पहुंचाएगा। स्टेट बैंक की ओर से चुनाव आयोग को 6 मार्च तक देनी होगी। साथ ही चुनाव आयोग 13 मार्च तक चुनाव आयोग अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर जानकारी जनता तक पहुंचाएगा। न्यायालय ने आदेश दिया कि इसके बाद राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड की राशि खरीदार के खाते में वापस करनी होगी
सुप्रीम कोर्ट ने दो निर्णय किए थे, एक सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा लिखा गया था और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा, दोनों सहमत थे। कोर्ट ने कहा कि इस योजना से सत्ताधारी पार्टी को फायदा उठाने में मदद मिलेगी।फैसले में कहा गया, “आर्थिक असमानता के कारण राजनीतिक स्तर पर अलग-अलग स्तर की व्यस्तताएं होती हैं। जानकारी तक पहुंचने से नीति निर्माण प्रभावित होता है और साथ ही बदले की भावना से की जाने वाली व्यवस्था से भी सत्ता में रहने वाली पार्टी को मदद मिल सकती है।”
काले धन पर अंकुश लगाने में योजना अनुचित
न्यायालय ने यह भी कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना को यह कहकर उचित नहीं ठहराया जा सकता कि इससे राजनीति में काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि दानदाताओं की गोपनीयता महत्वपूर्ण है, लेकिन पूर्ण छूट देकर राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता हासिल नहीं की जा सकती।
पीठ ने 2 नवंबर, 2023 को तीन दिन की सुनवाई के बाद योजना की कानूनी वैधता से संबंधित मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) से योजना के तहत बेचे गए चुनावी बांड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को कहा था।