आंदोलनकारियों को बेल : धारा 307 लगाने का इरादा फेल

उत्तराखंड के न्यायिक इतिहास में आज की तारीख हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गई है। न्यायालय ने आज अपनी कलम से एक ऐसा आदेश लिखा, जिसने ताकतवर सत्ता को ताउम्र के लिए सबक दे दिया है।

सबक ये, कि कितनी भी कोशिशें कर लो, कितने भी पैंतरे आजमा लो, सच को झुठलाया नहीं जा सकता।

न्यायालय से जिस न्याय की आस थी, वो आज साकार हो गई।

देहरादून की सीजेएम कोर्ट के न्यायाधीश लक्ष्मण सिंह ने आज न केवल उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार समेत 13 युवाओं की जमानत याचिका मंजूर कर दी, बल्कि इन युवाओं के खिलाफ 307 जैसी गंभीर धारा लगाए जाने की मांग को भी सिरे से खारिज कर दिया।

अभियोजन पक्ष लगातार युवाओं की जमानत याचिका का विरोध करते हुए रिमांड की मांग करता रहा लेकिन बचाव पक्ष की दलीलों के आगे उसके अरमान धरे के धरे रह गए।

इस मामले में गिरफ्तार 13 युवाओं की जमानत और आईपीसी की धारा 307 जोड़े जाने की मांग खारिज हो जाने के बाद अब पुलिस और सरकार बहादुर की भारी फजीहत होना तय है।

जमानत का जो आदेश बीते रोज सीजेएम कोर्ट देहरादून ने दिया, उससे साफ हो गया है कि इन युवाओं के विरुद्ध जो आरोप लगाए गए थे, पुलिस उनका कोई भी ठोस प्रमाण नहीं दे पाई।

जमानत के आदेश में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लक्ष्मण सिंह ने लिखा है, ‘अभियुक्तगण पर आरोप है कि उनके द्वारा उग्रतापूर्ण आंदोलन कर, सरकारी संपत्ति को क्षति कारित की गई है. इस संबंध में प्रस्तुत आख्या व उपलब्ध प्रपत्रों में सरकारी संपत्ति का विवरण तथा नुकसान का अनुमान का कोई उल्लेख नहीं है।’

जमानत आदेश में यह भी लिखा है, ‘अभियुक्तगण पर दौराने आंदोलन पुलिस कर्मियों की वर्दी फाड़ने का आक्षेप है। उपलब्ध अभिलेखों में ऐसी वर्दी या एसा अन्य कोई चीज कब्जे में नहीं लिया गया है।’ यानी पुलिस अदालत में वर्दी फाड़े जाने का आरोप साबित नहीं कर पाई।

इसके आलावा पुलिसकर्मियों पर लगी जिन चोटों को जानलेवा बता कर इन युवाओं पर धारा 307 लगाने की मांग की गई, अदालत ने उन्हें बेहद मामूली माना।

जमानत आदेश में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, ने लिखा, ‘जहां तक पत्थरबाजी किये जाने से पुलिस अधिकारियों / कर्मचारियों पर गम्भीर चोट कारित किए जाने का प्रश्न है? इस संबंध में चोटिलों के मेडिकल प्रस्तुत किये गये हैं। जिनमें चोटिलों पर सामान्य चोट होना दर्शाता है। ’

अदालत के इस आदेश के बाद अब मूल सवाल पर आते हैं। मूल सवाल यह है कि क्या इस पूरे प्रकरण से सरकार कोई सबक लेगी ?

9 फरवरी को लाठीचार्च और पत्थरबाजी की घटना के बाद जिस तरह से बॉबी पंवार और उनके 12 आंदोलनकारी साथियों कि गिरफ्तारी हुई उसी से अंदेशा हो गया था कि बेरोजगारों के आंदोलन को दबाने के लिए अब न्यायालय में तरह-तरह की तिकड़मे लगाई जाएंगी।

ये आंदेशा पिछले चार दिनों में बिल्कुल सही साबित हुआ।

11 तारीख से आज तक इस मामले में हुई चार सुनवाइयों में अभियोजन पक्ष ने जिस तरह की दलीलें दी, और वक्त मांगने के लिए जिस तरह के बहाने बनाए, उनसे साफ हो गया था कि सरकार किसी भी सूरत में युवाओं की रिहाई नहीं चाहती थी।

मगर बचाव पक्ष की दलीलों के आगे सारी तिकड़मे फेल हो गई।

जरा 11 फरवरी से आज तक कोर्ट में अभियोजन पक्ष द्वारा रखे गए तर्कों पर एक नजर डालते हैं।

जेल में बंद युवाओं की जमानत के मामले को लंबा खींचने के लिए अभियोजन पक्ष ने पहले केस डायरी तैयार न होने की बात कहते हुए पांच दिन का समय मांगा, लेकिन अदालत ने पांच के बजाय एक दिन का वक्त देकर इस मांग को खारिज कर दिया।

इसके बाद अभियोजन पक्ष ने घायल पुलिस कर्मियों की मेडिकल रिपोर्ट तैयार न होने और मामले में धारा 307 जोड़ने की बात कहते हुए युवाओं की रिमांड की मांग की। लेकिन बचाव पक्ष ने इन दलीलों को अपने सवालों और तर्कों से बेअसर कर दिया, जिसके बाद अदालत ने युवाओं की जमानत मंजूर कर दी।

कितनी हैरानी की बात है कि जो पुलिस प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लाठीचार्ज के बाद हुई पत्थरबाजी के लिए बाहरी तत्वों को जिम्मेदार बता रही थी, वहीं पुलिस अदालत में युवाओं पर अटेंप्ट टू मर्डर की धारा 307 लगाने की मांग कर रही थी।

सवाल यह है कि आखिर जब पत्थरबाजी करने वाले बाहरी तत्व थे, तो अभियोजन पक्ष युवाओं के खिलाफ इतनी गंभीर धारा लगाने, और उनकी रिमांड की मांग क्यों कर रहा था ?

ये वो सवाल है जो पुलिस और सरकार से तब तक पूछा जाएगा, तब तक इसका सही जवाब नहीं मिल जाता।

इस घटनाक्रम के बाद धामी सरकार युवाओं के साथ ही विपक्ष के निशाने पर आ गई है। पहले से ही युवाओं की नाराजगी झेल रही धामी सरकार के लिए अब स्थितियां पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण होनी तय हैं।

 

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button