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द्वितीय केदार मद्महेश्वर और तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि भी तय

द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर और तृतीय कपाट तुंगनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि तय हो गई है। मई महीने में ही दोनों धामों के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे।

द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर और तृतीय कपाट तुंगनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि तय हो गई है। मई महीने में ही दोनों धामों के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे।

इस दिन खुलेंगे मद्महेश्वर और तुंगनाथ के कपाट

पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ और मर्कटेश्वर मंदिर मक्कू में विशेष पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के कपाट खुलने की तिथि घोषित की गई। द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर के कपाट इस बार 20 मई को खुलेंगे। जबकि तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट 10 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे।

मध्यमहेश्वर में शिव की पूजा नाभि लिंगम के रुप में होती है

मध्यमहेश्वर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ के पास स्थित है। यहां शिव की पूजा नाभि लिंगम के रुप में की जाती है। कुछ किंवदंतियां तो ये भी कहती हैं कि यहां की सुन्दरता में मुग्द्ध होकर शिव-पार्वती ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी।

मदमहेश्वर के बारे में ये भी कहा जाता है कि यहां की पवित्र जल की चंद बूंदें ही मोक्ष के लिए काफी हैं। इसके साथ ही कहा जाता है जो भी इंसान भक्ति या बिना भक्ति के भी मदमहेश्वर के माहात्म्य को सुनता या पढ़ता है उसे बिना कोई और चीज करे शिव के धाम की प्राप्ति हो जाती है। इसी के साथ कोई भी अगर यहां पिंडदान करता है तो उसकी सौ पुश्तें तक तर जाती हैं।

विश्व में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित शिव का धाम है तुंगनाथ

विश्व में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित शिव का धाम तुंगनाथ रुद्रप्रयाग जिले में समुद्र की सतह से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। तुंगनाथ में भगवान शिव के साथ-साथ भगवती, उमादेवी और ग्यारह लघुदेवियाँ भी पूजी जाती हैं। इन देवियों को स्थानीय भाषा में द्यूलियाँ भी कहा जाता है। माघ के महीने में तुंगनाथ का डोला या दिवारा निकाला जाता है जो पंचकोटि गाँवों का फेरा लगाता है। इस डोले के साथ गाजे-बाजे और निसाण भी होते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार तुंगनाथ में भगवान शिव के बाहु यानी भुजा की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि रावण ने इसी स्थान पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था और बदले में भोले बाबा ने उसे अतुलनीय भुजाबल दिया था। इस घटना के प्रतीक के रूप में यहां पर रावणशिला और रावण मठ भी हैं।

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