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Supreme Court ने Electoral Bonds पर लगाई रोक, जानिए Scheme के बारे में अहम जानकारी

लोकसभा चुनाव से करीब दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से केंद्र सरकार को झटका दिया है। बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को रद्द कर दिया है।

Supreme Court: लोकसभा चुनाव से करीब दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने तमाम राजनीतिक दलों और केंद्र सरकार को बड़ा झटका दिया है। बता दे कि आज सुप्रीम कोर्ट ने 2019 से चलती आ रही यह स्कीम आज ही रद्द कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम से सभी पार्टियों को मिली फंडिंग वापस देने के आदेश दिए है। 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक जितने भी लोगों ने चुनावी बॉन्ड खरीदे है और  कितनी रकम फंडिंग में दी है। इसकी जानकारी स्टेट बैंक आफ इंडिया को देनी होगी। भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने(रकम खुदरा करवाना) के लिए अधिकृत किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले यह जानकारी स्टेट बैंक की ओर से चुनाव आयोग को दी जाएगी। इसके बाद चुनाव आयोग यह जानकारी जनता तक पहुंचाएगा।  

क्या है चुनावी बॉन्ड?

साल 2018 में चुनावी बॉन्ड की शुरुआत हुई थी। इसे लागू करने के पीछे केंद्र सरकार का मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बांड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दे सकती थी। इसके बाद राजनीतिक दल इन बांड को स्टेट बैंक आफ इंडिया में भुनाकर(रकम खुदरा करवाना) रकम हासिल करते थे।

क्यों जारी हुई थी चुनावी बॉन्ड की स्कीम?

चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी। 2 जनवरी 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था। यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे।

क्या फंडिंग में आई थी पारदर्शिता?


केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत चार लोगों की दाखिल की गई याचिकाओं पर अपना आखिरी फैसला सुनाया है। 

इस फैसले पर न्यायालय ने माना कि चुनावी बांड योजना अपनी गुमनाम प्रकृति के कारण सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर प्रहार करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने आशंका जताई कि राजनीतिक दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो ऐसे में रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है। पीठ में शामिल जज जस्टिस गवई ने कहा कि पिछले दरवाजे से रिश्वत को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस स्कीम को सत्ताधारी दल को फंडिंग के बदले में अनुचित लाभ लेने का जरिया बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने मतदाताओं के अधिकार की भी बात की।

इस मामले पांच जजों की संविधान पीठ ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग से योजना के तहत बेचे गए चुनावी बॉन्ड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को कहा था।

 

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