उत्तरकाशी के सिलक्यारा के सुरंग में 41 मजदूरों के अंदर फंसे लगभग 8 दिन हो गए है। शासन-प्रशासन की ओर से की गयी सभी तैयारियां अभी तक नाकाफ़ी ही लग रही है। मजदूरों को बाहर निकालने को बनाएं गए अभी तक के सभी प्लान विफल हो रहे है। सुरंग में मजदूरों को बाहर निकलने के लिए पाइप बिछाने का काम शुरू किया गया है लेकिन उससे सुरंग के अंदर और भी खतरा पैदा होने के संकेत मिल रहे है जिस कारण रेस्क्यू में बार बार अड़चने आ रही है। राज्य सरकार और केंद्र सरकार लगातार रेस्क्यू के काम में पैनी नज़र रखे हुए है और मजदूरों को बाहर निकालने के लिए हर संभव प्रयास की बात कही जा रही है।
वही दूसरी ओर टर्नल के बाहर अपनों को आँखों के सामने देखने की उम्मीद लगाए बैठे उन 41 मजदूरों के परिवार वालों के सब्र का बांध टूट रहा है। 8 दिनों से अंदर फंसे लोग किस तरह से अपना एक एक पल काट रहे होंगे यही सोच कर उनका दिल और जोर जोर से धकड़ना शुरू हो जाता है। आँखों में आँसू और दिल में एक उम्मीद लगाए सभी बस एक टक टर्नल की ओर निहार रहे है और बस यही सुनने को बेताब है की रेस्क्यू का काम कब तक पूरा होगा और सभी लोग सुरक्षित बाहर निकल कर आएंगे ?
इतने दिनों तक अंदर फंसे रहने के कारण कई श्रमिकों की तबियत भी खराब हो रही है बाहर से दवाई और खाद्य सामग्री उनको पाइप द्वारा भेजी जा रही है लेकिन जैसे जैसे दिन बीत रहे है बाहर इंतज़ार में खड़े उनके परिवार वालों की चिंता अब बढ़ने लगी है। अंदर फँसे श्रमिकों के परिवार संग देश भर के लोग सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं।
अंदर फंसे मजदूरों के लिए जितना एक एक पल बिताना मुश्किल हो रहा है वही बाहर उनके इंतज़ार में बैठे उनके परिवार के सदस्यों का अब सब्र टूट रहा है। शासन-प्रशासन द्वारा किये जा रहे रेस्क्यू ऑपरेशन पर उन्होंने ढिलाही बरतने का आरोप लगाया है उनका कहना है कि पर्याप्त संसाधन न होने से दिन ब दिन उनका इंतज़ार और भी ज्यादा बढ़ रहा है।
झारखंड निवासी आनंद ने कहा कि उसका चचेरा भाई रंजीत भी सुरंग के अंदर फंसा हुआ है। पिछले तीन दिन से उससे बात करने का मौका नहीं मिल पाया है जिससे उनकी चिंता बढ़ी हुई है।
झारखंड के जनपद रांची के खीराबेरा गांव निवासी ओम कुमार ने बताया कि 14 दिन पहले तीन चचेरे भाईयों के साथ सिलक्यारा आया था। और उसके चचेरे भाई 18 वर्ष का सुखराम बेदिया, 21 वर्ष का राजेंद्र बेदिया और 20 वर्ष का अनिल बेदिया सुरंग में ही फंसे हैं। ओम कुमार बेदिया ने कहा कि तीनों भाई सुरंग से बाहर निकलेंगे तो फिर यहां से सीधे अपने घर जाएंगे।
अंदर फंसे श्रमिकों में चंपावत निवासी पुष्कर के घर में भी सब उनके वापिस आने का ही इंतज़ार कर रहे है। बेटे के अंदर फंसे होने की चिंता में उनकी माँ गंगा देवी ने खाना पीना भी बंद कर दिया है और पल पल अपने बेटे के सकुशल वापस लौटने का इंतज़ार कर रही है। पुष्कर के मामा महेंद्र सिंह भी लगातार टर्नल के बाहर है और स्तिथि अपर नज़र रखे हुए है उन्होंने बताया कि पुष्कर से आखिरी बार 11 नवंबर को बात हुई थी। तब से बात नहीं हो पाई।
मोतीपुर कला से आए अशोक चौधरी ने बताया कि उनका बड़ा भाई संतोष चौधरी भी सुरंग में फंसे लोगों में शामिल है। वह भाई को हौसला देने के लिए यहां आया है। दिवाली और भाई दूज में इंतज़ार करती रह गयी उसकी बड़ी बहन ने भी कहा है कि भाई को लेकर ही घर आना। जिसके लिए वह यहाँ दिन रात बस इसी आस में बैठे है कि जल्द ही रेस्क्यू पूरा हो और वह अपने भाई को सही सलामत देख सकें।
वहीं अंदर फंसे श्रमिकों से हुई बातचीत में मिली जानकारी अनुसार श्रमिकों का कहना है की जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी उनको बाहर निकाल लो। साथ ही यह भी पूछ रहे है कि अंदर फंसे लोगों को बचाने के लिए बाहर कुछ हो भी रहा है या नहीं। रेस्क्यू ऑपरेशन की पूरी जानकारी उनको दी जा रही जिससे अंदर उनका हौसला बढ़ा रहे और वह बेउम्मीद न महसूस करें।
अंदर फंसे सभी श्रमिकों के परिवार वालों को अपनों से बात करने की आस है अंदर वह किस हाल में रह रहे है वह जानना चाहते है। सभी अब भगवान भरोसे है और यही उम्मीद लगा रहे है शासन-प्रशासन जल्द ही रेस्क्यू करें ताकि वह अपनों को सकुशल वापस अपने घर ले जाएं। अब देखने वाली बात यह है की अब और कितना समय लग सकता है। कब तक रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होगा और सभी श्रमिकों को सकुशल वापस निकाला जाएगा ?