द्वितीय केदार मद्महेश्वर के कपाट शीतकाल के लिए हुए बंद

रुद्रप्रयाग : पंच केदारो में द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मदमहेश्वर के कपाट शुभ लगनानुसार वेद ऋचाओं के साथ विधि-विधान से शीतकाल के लिए बन्द कर दिये गये है. मदमहेश्वर धाम के कपाट बन्द होने के बाद चल विग्रह उत्सव डोली कैलाश से शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ के लिए रवाना हो गयी है. तथा भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली आज प्रथम रात्रि प्रवास के लिए गौण्डार गांव पहुंचेगी जहाँ पर ग्रामीणों द्वारा विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्रियों से अर्घ्य लगाकर विश्व समृद्धि की कामना की जायेगी. 19 नवम्बर को भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली गौण्डार गांव से रवाना होकर द्वितीय रात्रि प्रवास के लिए राकेश्वरी मन्दिर रासी पहुंचेगी तथा 20 नवम्बर को राकेश्वरी मन्दिर रासी से रवाना होकर अन्तिम रात्रि प्रवास के लिए गिरीया गांव पहुंचेगी तथा 21 नवम्बर को गिरीया गांव से रवाना होकर शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर में विराजमान होगी. तथा 22 नवम्बर से भगवान मदमहेश्वर की शीतकालीन पूजा ओकारेश्वर मन्दिर में विधिवत शुरू होगी. भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के कैलाश से शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ आगमन पर मनसूना में आज से तीन दिवसीय मदमहेश्वर मेले का आगाज रंगारंग धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ होगा जबकि भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के ऊखीमठ आगमन पर जी आई सी ऊखीमठ के खेल मैदान में आगामी 20 नवम्बर से लगने वाले त्रिदिवसीय मदमहेश्वर मेले की तैयारियां जोरों पर है.

द्वितीय केदार मदमहेश्वर धाम का धार्मिक महत्व

द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर धाम का महात्म्य केदारखण्ड के अध्याय 47 के श्लोक संख्या 1 से लेकर 58 में विस्तृत से किया गया है! भगवान मदमहेश्वर को न्याय का देवता माना जाता है तथा जो श्रद्धालु मदमहेश्वर तीर्थ में निस्वार्थ भावना से अपने श्रृद्धा सुमन अर्पित करता है उसे मनौवाछित फल की प्राप्ति होती है! केदार धाम में पाण्डवों द्वारा जब भगवान शंकर के पृष्ठ भाग के दर्शन हुए तो उसके बाद जब पाण्डवों ने बद्रीनाथ धाम के लिए प्रस्थान किया तो पाण्डवों ने मदमहेश्वर धाम में लम्बा समय व्यतीत कर अपने पितरों के मोक्ष के लिए मदमहेश्वर धाम में एक शिला पर पिण्डदान किया तथा पाण्डवों द्वारा शिला पर किये गए पिण्डदान के साक्ष्य आज भी शिला पर विद्यमान है! मदमहेश्वर धाम से लगभग 22 किमी दूर पाण्डव सेरा में पाण्डवों द्वारा बोई गयी धान की फसल आज भी अपने आप उगती है! मदमहेश्वर धाम के ऊपरी हिस्से में सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य बूढ़ा मदमहेश्वर का पावन तीर्थ है! बूढ़ा मदमहेश्वर के आचल में बसे भूभाग को प्रकृति ने अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है! मदमहेश्वर तीर्थ की तरह बूढ़ा मदमहेश्वर में भी पूजा – अर्चना का विधान है! बूढ़ा मदमहेश्वर तीर्थ से चौखम्बा को अति निकट से देखा जा सकता है! बूढ़ा मदमहेश्वर से प्रकृति के अदभुत नजारों को अति निकट से दृष्टिगोचर होने से भटके मन को अपार शान्ति की अनुभूति होती है! मदमहेश्वर धाम से लगभग तीन किमी दूर मदमहेश्वर पुरी के क्षेत्र रक्षक थौला क्षेत्रपाल का तीर्थ है! थौला क्षेत्रपाल के कपाट भी मदमहेश्वर धाम की तर्ज पर बन्द व खोलने की परम्परा युगों पूर्व की है!

 

कैसे पहुंचे मदमहेश्वर धाम

देवभूमि के प्रवेशद्वार हरिद्वार से बस या निजी वाहन से 204 किमी दूरी तय करने के बाद तहसील मुख्यालय ऊखीमठ पहुंचा जा सकता है! तहसील मुख्यालय ऊखीमठ से 22 किमी दूरी बस या निजी वाहन से रासी गांव पहुंचा जा सकता है तथा रासी गांव से 16 किमी दूरी तय करने के बाद मदमहेश्वर धाम पहुंचा जा सकता है! मदमहेश्वर धाम पहुंचने के लिए गौण्डार, बनातोली, खटारा, नानौ, मैखम्बा व कूनचटटी में तीर्थ यात्रियों को रहने व खाने की व्यवस्था मिल जाती है. भगवान मदमहेश्वर की शीतकालीन पूजा स्थल

द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर की शीतकालीन पूजा ओकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ में समपन्न की जाती है तथा मई माह में पंचाग गणना के अनुसार निर्धारित तिथि पर भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली ऊखीमठ से धाम के लिए रवाना होती है तथा नवम्बर माह में भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के कैलाश से ऊखीमठ आगमन की परम्परा युगों से चली आ रही है! मई माह में भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ से कैलाश रवाना होने से पूर्व नये अनाज का भोग लगाकर क्षेत्र के समृद्धि की कामना की जाती है.

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