उत्तराखंडधर्म-संस्कृति

रुद्रप्रयाग: तृतीय केदार श्री तुंगनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए हुए बंद

आज प्रातः 11 बजे पूरे विधि-विधान के साथ तृतीय केदार श्री तुंगनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए है।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्तिथ दुनिया का सबसे ऊंचा भगवान शिव का मंदिर तृतीय केदार श्री तुंगनाथ मंदिर के कपाट आज वैदिक मंत्रोच्चार एवं विधि विधान के साथ पूर्वाह्न 11 बजे शीतकाल हेतु बंद हो गये है। कपाट बंद होने के अवसर पर डेढ़ हजार श्रद्धालुओं ने बाबा तुंगनाथ के दर्शन किये। श्री बद्रीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा कि पहली बार तुंगनाथ जी में एक लाख पैंतीस हजार से अधिक तीर्थयात्रियों ने दर्शन किये हैं।

विधि-विधान के साथ बंद हुए कपाट :

कपाट बंद होने के अवसर पर प्रातः: ब्रह्म मुहूर्त में श्री तुंगनाथ जी के कपाट खुल गये थे इसके बाद प्रात: कालीन पूजा-अर्चना तथा दर्शन शुरू हो गये। तत्पश्चात दस बजे से कपाट बंद की प्रक्रिया शुरू हो गई तथा बाबा तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को स्थानीय फूलों भस्म आदि से ढ़क कर समाधि रूप दे दिया गया। इसके बाद ठीक ग्यारह बजे पूर्वाह्न श्री तुंगनाथ जी के कपाट शीतकाल हेतु बंद कर दिये गये।

शीतकाल के लिए देव-डोली ने किया प्रस्थान :

कपाट बंद होने के बाद श्री तुंगनाथ जी की देव डोली मंदिर प्रांगण में आ गई तथा मंदिर परिक्रमा के पश्चात देव डोली चौपटा को प्रस्थान हुई। 2 नवंबर को श्री तुंगनाथ जी की देव डोली भनकुन प्रवास करेगी। 3 नवंबर को भूतनाथ मंदिर होते हुए शीतकालीन गद्दीस्थल श्री मार्कंडेय मंदिर मक्कूमठ पहुंचेगी तथा 3 नवंबर को देव भोज का आयोजन किया जायेगा। इसी के साथ यहां बाबा तुंगनाथ जी की शीतकालीन पूजा शुरू हो जाएंगी।

मंदिर की मान्यता :

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया था, क्योंकि शिव महाभारत के युद्ध में नरसंहार के कारण पांडवों से रुष्ट हो गए थे। यह भी माना जाता है कि माता पार्वती ने भोलेनाथ से विवाह से पहले उन्हें खुश करने के लिए तुंगनाथ की धरती पर ही तपस्या की थी।

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