Pitru Paksha 2022: गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है. पितृपक्ष का समय पितरों यानी पूर्वजों के लिए समर्पित है. इसकी शुरुआत भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है, जो अश्विम महीने की अमावस्या तिथि को समाप्त होती है. आज चौथ दिन भी बड़ी संख्या में पिंडदानी पिंडदान कर रहे हैं. महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया क्षेत्र में पांच पिंडवेदियां हैं, लेकिन तीन पिंडवेदियां धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती प्रमुख हैं. पुरखों के मोक्ष की कामना लेकर आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हुए महाबोधि मंदिर में भी पिंडदान के विधान को कालांतर से निभाते आए हैं. इसी पौराणिक मान्यता के चलते यहां पिंडदान किया जाता है.

चौथे दिन कैसे करें पिंडदान:

सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण के पश्चात धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान के दौरान वहां स्थित अष्टकमल आकार के कूप में पिंड विसर्जित किया जाता है. इसके बाद मातंगवापी पिंडवेदी में पिंडदान होता है. यहां पिंडदानी पिंड मातंगेश शिवलिंग पर अर्पित करते हैं. स्कंद पुराण के अनुसार, एक कथा है कि महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था. धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है. यहां किए गए पिंडदान और त्रिकपंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.

गया में क्यों किया जाता है पिंडदान

गया को विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं. इसे मोक्ष की भूमि कहा जाता है. विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं. ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे और यही वजह है कि आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए यहां  आती है.

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