पंडित नेहरू को उत्तराखंड से था अगाध लगाव, देहरादून में बीते थे जीवन के अंतिम चार दिन
स्वाधीनता आंदोलन के नायक, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को आज उनके जन्मदिन पर देशभर में याद किया जा रहा है। आजादी के आंदोलन से लेकर आजादी के बाद देश को नेतृत्व देने में उनका योगदान अतुलनीय है
उनकी नेतृत्व क्षमता को न केवल भारत बल्कि विश्वभर में सराहा जाता है। 14 नवंबर 1889 को प्रयागराज में जन्मे पंडित जवाबर लाल नेहरू के जीवन से जुड़ी तमाम घटनाएं हैं, जिन्हें उनके जन्मदिन पर याद किया जा रहा है।
उत्तराखंड की बात करें तो पंडित जवाहरहलाल नेहरू का देवभूमि से गहरा नाता रहा है।
उन्होंने अपने जीवन काल में दर्जनभर से ज्यादा बार उत्तराखंड की यात्रा की। किशोरावस्था से लेकर जीवन के अंतिम समय तक वे किसी न किसी बहाने देवभूमि आते रहे।
आजादी के आंदोलन में उन्हें लंबे वक्त तक देहरारादून की जेल में कैद रखा गया था। इस दौरान पंडित नेहरू ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ और आत्मकथा ‘एन ऑटोबाइग्रेफी (टुवार्ड्स फ्रीडम) (An Autobiography: Toward Freedom – 1936) के महत्वपूर्ण अंश लिखे। अपनी आत्मकथा की शुरुआत उन्होंने देहरादून जेल से ही की थी। इसमें उन्होंने पहाड़ के प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही देहरादून का भी उल्लेख किया है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने जीवन के अंतिम चार दिन जवाहर लाल नेहरू ने उत्तराखंड में ही व्यतीत किए थे। 26 मई 1964 के चार दिन तक देहरादून में रहने के बाद पंडित नेहरू दिल्ली रवाना हुए थे। अगले दिन 27 मई 1964 को उनके निधन की खबर ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया था।
आज पंडित नेहरू के जन्मदिन के मौके पर उनके उत्तराखंड प्रवास को याद करते हैं।
अल्मोड़ा और देहरादून जेल में बिताया लंबा वक्त
पंडित नेहरू ने अपनी आत्मकथा में उत्तराखंड के प्रति लगाव का बहुत विस्तार से जिक्र किया है। उत्तराखंड में वे सबसे ज्यादा समय अल्मोड़ा जेल में रहे। अल्मोड़ा जेल में उन्होंने कुल 1041 दिन बिताए थे। अल्मोड़ा जेल के अलावा देहरादून की जेल में भी उन्हें 4 बार रखा गया था। देहरादून जेल में पंडित नेहरू को सबसे पहले 1932 में रखा गया था। उसके बाद 1933, 1934 और 1941 में उन्हें देहरादून जेल में कैद रखा गया। इस अवधि में पंडित नेहरू ने लेखन का काम जारी रखा। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ के कई अंश इसी जेल में लिखे गए।
लगातार आते रहे उत्तराखंड
पंडित नेहरू जेल यात्रा से पहले भी उत्तराखंड आते रहे। सन् 1920 में जब देहरादून में कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया गया तो उसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू ने ही की थी। ब्रिटेन से भरत लौटने के बाद पंडित नेहरू का यह पहला बड़ा राजनीतिक कार्यक्रम था। इसके दो साल बाद भी देहरादून में कांग्रेस का राजनीतिक सम्मेलन हुआ था जिसकी अध्यक्षता भी पंडित नेहरू ने ही की थी। उस सम्मेलन में सरदार बल्लभ भाई पटेल भी शामिल हुए थे।
अलग पहाड़ी राज्य के थे पैरोकार
पंडित नेहरू आजादी के बाद अलग पहाड़ी राज्य की पैरोकार थे। आजादी से पहले 5-6 मई 1998 को श्रीनगर गढ़वाल में कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था जिसमें पंडित नेहरू ने बतौर अध्यक्ष प्रतिभाग किया। इस सम्मेलन में पहली बार अलग पर्वतीय राज्य बनाने की मांग उठी थी। पंडित नेहरू ने उत्तराखण्ड की विशेष भौगोलिक परिस्थिति और सांस्कृतिक महत्ता को स्वीकार करते हुए इस क्षेत्र को विशेष तवज्जो देने के प्रति समर्थन दिया था।
आजादी के बाद 1952 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पीसी जोशी ने अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग की थी। इसके पीछे 1932 में नेहरू द्वारा पहाड़ के प्रति जाहिर किए गए लगाव को बड़ा आधार माना जाता है।
मसूरी को मानते थे दूसरा घर
देहरादून के अलावा पर्यटक नगरी मसूरी से भी जवहर लाल नेहरू को बड़ा प्रेम था। वे वह अपने पिता मोतीलाल नेहरू और माता स्वरूप रानी के साथ सबसे पहले सन 1906 में मसूरी आए थे। तब नेहरू की उम्र 16 वर्ष थी।
इसका बाद उनका मसूरी आना लगा रहा। वे बाद में अपनी बेटी इंदिरा गांधी के साथ भी मसूरी आए। मसूरी को पंडित नेहरू अपना दूसरा घर मानते थे।
सन 1959 में तिब्बती धर्मगुरु ददाई लामा अपनी मातृभूमि से निर्वासित होकर भारत पहुंचे तो उनके रहेने की व्यवस्था मसूरी में की गई। तब पंडित नेहरू ने हैप्पीवैली स्थित बिरला हाउस में दलाई लामा से मुलाकात की थी।
देहरादून में बिताया जीवन का अंतिम वक्त
पंडित जवाहर लाल नेहरू के जीवन का अंतिम वक्त देहरादून में ही बीता था। दरअसल मई 1994 में उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में हुए अधिवेशन में नेहरू को हल्का दौरा पड़ा था जिसके बाद स्वास्थ्य लाभ के लिये वे 23 मई 1964 को देहरादून पहुंचे। चार दिन के प्रवास में नेहरू मसूरी और सहस्रधारा की गए। 26 मई को वे दिल्ली के लिए रवाना हुए। अगले दिन 27 मई 1964 को नेहरू चिर यात्रा पर चले गए।
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