38 साल बाद घर आएगा सियाचीन से शहीद का पार्थिव शरीर,

16 अगस्त। सियाचिन में 38 साल पहले शहीद हुए उत्तराखंड निवासी लांसनायक चन्द्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर हल्द्वानी लाया जा रहा है। शहीद के परिजन अब हल्द्वानी में रहते हैं। शहीद के परिवार में दो बेटियां भी हैं। 38 साल पहले बड़ी बेटी कविता साढ़े चार साल की और छोटी बेटी बबीता तब डेढ़ साल की थी। शहीद लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला की छोटी बेटी बबीता की उम्र अब 42 साल है।

 

शहीद लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी आज 66 साल की हो गई

शहीद लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी शांति देवी आज 66 साल की हो गई हैं।उनकी ससुराल द्वाराहाट तो मायका हवालबाग में है। जब उनको 1984 में उनको अपने पति के निधन की सूचना मिली थी तब वह अपनी ससुराल द्वाराहाट में थीं। 1995 में शांति देवी अपने परिवार के साथ हल्द्वानी के सरस्वती विहार में आकर रहने लगी। बड़ी होने पर दोनों बेटियों की शादी कर दी।L

जनवरी 1984 में करीब एक महीने के लिए गांव में आये थे

लांसनायक चन्द्रशेखर हर्बोला जब शहीद हुए तो उनकी शादी को तब मात्र 6 साल हुए थे। जनवरी 1984 में करीब एक महीने के लिए गांव में आये थे। इसके बाद जब वापस ड्यूटी पर जाने लगे तब उन्होंने अपनी पत्नी से कहा था कि इस बार मैं जल्दी घर आने की सोच रहा हूं। लेकिन कुछ समय बाद टेलीग्राम पर शहीद होने का समाचार मिला और अब सालों बाद पार्थिव शरीर घर लाया जा रहा है।

मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के रहने वाले

शहीद चंद्रशेखर हर्बोला मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाथीगुर बिंता के रहने वाले हैं। जो कि 19 कुमाऊं रेजीमेंट में लांसनायक थे। वह 1975 में सेना में भर्ती हुए थे। 1984 में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन के लिए झड़प हो गई थी। भारत ने इस मिशन का नाम ऑपरेशन मेघदूत रखा था। भारत की ओर से मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी। इसमें लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने की वजह से इसकी चपेट में आ गए। भारत सरकार और सेना की ओर से सैनिकों को ढूंढने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया गया। इसमें 15 सैनिकों के पार्थिव शरीर मिल गए थे लेकिन पांच सैनिकों का पता नहीं चल सका था।

हाथ में बंधे ब्रेसलेट से हुई शहीद की पहचान

उत्तराखंड निवासी 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद भी सुरक्षित है। परिजनों ने बताया कि अभी तक उन्हें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार शहीद की पार्थिव देह अब भी सुरक्षित अवस्था में है। सियाचिन में बर्फ में दबे रहने की वजह से शहीद की पार्थिव देह को नुकसान नहीं हुआ है। प्राप्त जानकारी के अनुसार शहीद चंद्रशेखर का जब शव मिला तो उनकी पहचान उनके हाथ में बंधे ब्रेसलेट से की गई । इसमें उनका बैच नंबर और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज थीं। बैच नंबर से सैनिक के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। इसके बाद उनके परिजनों को सूचना दी गई।

 

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button