World Tourism Day के मौके पर जानिए उत्तराखंड की चार ऑफबीट लोकेशन
हर साल आज के दिन यानी 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस(world tourism day) के रूप में मनाया जाता है। टूरिज्म डे को मनाने का मुख्य कारण पर्यटन के जरिए रोजगार को बढ़ावा देना है। इसके साथ ही दुनियाभर में लोगों को टूरिज्म को लेकर जागरूक करना और ज्यादा से ज्यादा घूमने की जगहों के बारे में लोगों को जानकारी देना है।
देवभूमि उत्तराखंड(uttarakhand) अपनी खूबसूरती के चलते पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां अनगिनत मंदिर, झील और रहस्यमयी जगहें मौजूद है। रोमांचक ट्रैक, बर्ड सेंचुरी, वाइल्डलाइफ हैबिटेट और खूबसूरत हिमालय से घिरा हुआ उत्तराखंड लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। पर्वतीय राज्य में प्रसिद्ध चार धाम, नैनीताल, मसूरी, हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे कुछ फेमस धार्मिक पर्यटन स्थल(tourism) हैं। लेकिन यहां कुछ ऐसी भी हिडन या आफबीट जगहें हैं जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे। इससे यह मतलब नहीं है कि यह जगहें सुंदर नहीं है इसलिए कम एक्सप्लोर हुई है बल्कि ये जगहें भी उतनी ही खूबसूरत हैं जितना राज्य की अन्य फेमस जगहें है। आइए पढ़ते है कुछ ऐसी कम भीड़ वाली जगहों के बारे में-
काकड़ीघाट
काकड़ीघाट में नीम करोली बाबा का आश्रम है। यह गांव अल्मोड़ा हिल स्टेशन में बसा हुआ है। यह काकडीघाटी कोसी नदी के तट पर मौजूद है। यह इतना प्रसिद्ध है कि एक बार यहां स्वामी विवेकानंद ने भी ध्यान किया था।
पाताल भुवनेश्वर
पाताल भुवनेश्वर उत्तराखंड के कुमाऊं रीजन के फेमस शहर पिथौरागढ़ के सबसे रहस्यमय गांवों में से एक है। यह गांव भगवान शिव को समर्पित है। यहां पर एक संकरी सुरंग है जिसके साथ 160 मीटर लंबी और 90 मीटर गहरी चूना पत्थर की गुफा है। यह कोई आम मंदिर नहीं बल्कि एक प्राचीन गुफा मंदिर है जो बहुत पुराना है। यहां आपको गुफाओं तक पहुंचने के लिए 90 फीट नीचे तक जाना पड़ता है।
खिर्सू
खिर्सू गांव पौड़ी गढ़वाल में स्थित है। यह गांव उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून से 92 किमी की दूरी पर है। यहां पर शांति पसंद लोगों को स्वर्ग जैसा अनुभव होता है। यहां हरे-भरे ओक और देवदार के जंगल और सेब के बागान है।
लैंसडाउन
लैंसडाउन पौड़ी जिले में स्थित एक सुन्दर पर्वतीय स्थल है। यहां प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ भारतीय सेना का गढवाल रेजीमेंट नामक सैन्य-दल भी मौजूद है। लैंसडाउन को स्थानीय भाषा में “कालुदंड” कहते हैं, जिसका अर्थ “काली पहाड़ी” है। वर्ष 1887 में, भारत के वायसराय रहे लार्ड लैंसडाउन ने ही इस हिल स्टेशन की खोज की थी। उस समय से ही यह हिल स्टेशन वायसराय रहे लार्ड लैंसडाउन के नाम से जाना जाता है।