ऐतिहासिक धरोहर है मां नंदा देवी का ये प्राचीन मंदिर, यहां भक्तों की हर मुराद होती है पूरी
उत्तराखंड राज्य को यूँही देवभूमि नहीं कहा जाता, यहाँ के कण कण में कोने कोने में देवी देवताओं का वास है। जिसका प्रमाण बन्ने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग यहाँ आते हैं। जहाँ पहुंचकर वो देवभूमि के कुदरती नजारे और धार्मिक स्थलों के अद्भुत एहसास की साक्षी बनते हैं। और उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में भी स्थित है माँ नंदा देवी का मंदिर। माँ का ये मंदिर समुद्रतल से लगभग 7,816 मीटर की उचाई पर स्थित है।
1000 साल से भी पुराना है इतिहास:
बात अगर इस मंदिर के इतिहस कि करें तो इस मंदिर का इतिहास 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। कुमाऊंनी शिल्पविधा शैली से निर्मित यह मंदिर चंद वंश की ईष्ट देवी को समिर्पत है। नंदा देवी माँ दुर्गा का अवतार और भगवान शंकर की पत्नी माना जाता है। और माँ के इसी स्वरुप के नाम से ही उत्तराखंड में अनेक नदियां,पर्वत, पहाड़ पुकारे जाते है .जैसे की नंदादेवी, नंदा देवी पर्वत, नंदाकोट, नंदा देवी हिमालय पर्वत, नंदाभनार, नंदाघुँटी, नंदाकिनी और नंदप्रयाग जैसे अनेक पर्वत चोटियां।
नंदा देवी की ये हैं मान्यताएं:
उत्तराखंड में माँ नंदा देवी को मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है। नंदा देवी गढ़वाल के राजा दक्ष-प्रजापति की पुत्री है, इसलिए सभी कुमाउनी और गढ़वाली लोग उन्हें कुमाऊ की पुत्री मानते है। साथ ही नंदा देवी को “बुराई के विनाशक” के रूप में माना जाता है। कत्यूरी वंस के शासक, चंद वंस के राजा और गढ़वाल के नरेश मां नंदा को कुल देवी के रूप में पूजते रहे रहे है, और अब भी इन्ही राजवंशों के लोग माँ नंदा देवी के मुख्य पुजारी माने जाते है। नंदा देवी को गढ़वाल और चंद राजाओं के राजकुल की बहन-बेटी के रूप में भी माना जाता था। पंचमी तिथि से प्रारम्भ मेले के अवसर पर दो भव्य देवी प्रतिमायें बनायी जाती हैं। पंचमी की रात्रि से ही जागर भी लगाया जाता है, नंदा की प्रतिमा का स्वरुप उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नंदादेवी का दर्शय बनाया जाता है।
इस प्रकार से पूरी होती है नंदा देवी की प्रतिमा:
माँ नंदा देवी के पूजन के लिए या फिर षष्ठी के दिन पुजारी गोधूली के समय चन्दन, अक्षत, पूजन का सामान तथा लाल एवं श्वेत वस्र लेकर केले के झुरमुटों के पास जाता है। वहां पहुंचकर वो धूप-दीप जलाकर पूजन के बाद अक्षत मुट्ठी में लेकर कदली स्तम्भ की ओर फेंके जाते हैं। जो स्तम्भ पहले हिलता है, उससे नन्दा बनायी जाती है। जो दूसरा स्तम्भ हिलता है, उससे सुनन्दा तथा तीसरे से देवी शक्तियों के हाथ पैर बनाये जाते हैं। तो ऐसे नंदा सुनंदा देवी की प्रतिमाओं को पूरा किया किया जाता है। सप्तमी के दिन कदली स्तम्भों की पहले चंदवंशीय कुँवर या उनके प्रतिनिधि पूजन करते है। उसके बाद मंदिर के अन्दर प्रतिमाओं का निर्माण होता है। प्रतिमा निर्माण मध्य रात्रि से पूर्व तक पूरा हो जाता है. और मध्य रात्रि में इन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा व तत्सम्बन्धी पूजा सम्पन्न होती है।
नंदा देवी महोत्सव में उमड़ती है भक्तों की भीड़:
बात अगर नंदा देवी मेला महोत्सव कि करें तो, 1926 से श्रीराम सेवक सभा ने इसके आयोजन की जिम्मेदारी ली है। तब से यही संस्था इसका आयोजन कर रही है। नंदा देवी महोत्सव पर विभिन्न शहरों से पर्यटक नैनीताल आते हैं, साथ ही इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्थानीय प्रतिभाओं को मंच प्रदान किया जाता है। इस दौरान फ्लैट्स मैदान पर दुकानें खूब सजती हैं। मेला होने से दुकानदारों व स्थानीय लोगों में उत्साह भी देखते बनता है। मेले में अलग अलग प्रकार के मनोरंजन के साधन भी खूब दिखाई पड़ते हैं। और सुरक्षा के लिहाज से पुलिस की ओर से आसामाजिक तत्वों पर सीसीटीवी कैमरों से नजर भी रखी जाती है।