महादेव शिव के इस मंदिर से टपकता है दूध, उमड़ता है भक्तों का सैलाब
अगर आप भी देवों के देव महादेव के भक्त हैं, तो आज के इस लेख में आपको भगवान भोलेनाथ के प्राचीन मंदिर “टपकेश्वर महादेव मंदिर “ के बारे में जानकर बेहद प्रसन्नता होगी, और आप भी अपने जीवनकाल में एक बार यहाँ आ कर भोले बाबा के दर्शन करने के इच्छुक हो जाएँगे। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत देश में भोलेनाथ के कई प्राचीन मंदिर हैं। जिनका इतिहास महाभारत और रामायण से जुड़ा है। और इनमें से एक ऐसा ही भगवान शिव का प्राचीन मंदिर उत्तराखंड देवभूमि में स्थित है। जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, आपको बता दें कि इस मंदिर का कुछ खास महत्व और रहस्य है। टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। पौराणिक मान्यताओं की माने तो आदिकाल में भोले शंकर ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे। इस मंदिर की शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं।
टपकेश्वर मंदिर का इतिहास और महत्व –
अगर बात की जाए शंकर भगवान के इस प्राचीन मंदिर के इतिहास और महत्व की। तो आपको बता दें कि यह भोलेनाथ को समर्पित गुफा मंदिर है। जिसका मुख्य गर्भगृह एक गुफा के अंदर है। और इस गुफा में शिवलिंग पर पानी की बूंदे लगातार टपकती रहती हैं। इसी कारण शिवजी के इस मंदिर का नाम टपकेश्वर पड़ा। टपक एक हिंदी शब्द है, जिसका अर्थ है बूंद-बूंद गिरना।
कई मान्यताएं और परिभाषाएं हैं –
भवन शिव के इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं और परिभाषाएं हैं। टोंस नदी के तट पर स्थित टपकेश्वर मंदिर की एक पौराणिक कथा के अनुसार- यह गुफा द्रोणाचार्य (महाभारत के समय कौरव और पांडवों के गुरु) का निवास स्थान माना जाता है। इस गुफा में उनके बेटे अश्वत्थामा पैदा हुए थे। बेटे के जन्म के बाद उनकी मां दूध नहीं पिला पा रही थी। उन्होंने भोलेनाथ से प्रार्थना की जिसके बाद भगवान शिव ने गुफा की छत पर गऊ थन बना दिए और दूध की धारा शिवलिंग पर बहने लगी। जिसकी वजह से प्रभु शिव का नाम दूधेश्वर पड़ा। हालाँकि, कलयुग के समय में इस धारा ने पानी का रूप ले लिया। जिसकी वजह से ही इस मंदिर को टपकेश्वर कहा जाता है।
टोंस नदी के तट पर स्थित –
देवभूमि स्थित इस मंदिर में भगवान शिव टपकेश्वर के नाम से जाने जाते है। यहां दो शिवलिंग हैं। गौरतलब है कि यह दोनों गुफा के अंदर स्वयं प्रकट हुए थे। बताते चलें कि शिवलिंग को ढकने के लिए 5151 रुद्राक्ष का उपयोग किया गया है। और मंदिर के आस-पास मां संतोषी की गुफा भी है। यह मंदिर टोंस नामक नदी के तट पर स्थित है। द्वापर युग में यह नदी तमसा नाम से प्रसिद्ध थी। मंदिर परिसर के आस-पास कई खुबसूरत झरने हैं। जिसका नजारा देखने के लिए यहां भारी मात्रा में श्रद्धालुओं का आवागमन होता हैं। और साथ ही यहां शाम को भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है।
गुरु द्रोणाचार्य ने यही 12 सालों तक शिव का किया तप –
कई मान्यताओं में से एक मान्यता यह भी है, कि इसी गुफा में कौरव और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य भगवान शिव की तपस्या करने के लिए आए थे। 12 साल तक उन्होंने भोलेनाथ की तपस्या की थी। उनकी इस कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दर्शन दिए, उनके अनुरोध पर ही भगवान शिव यहां लिंग के रूप में स्थापित हो गए। लोक मान्यता के अनुसार- गुरु द्रोणाचार्य को भगवान शिव ने इसी जगह पर अस्त्र-शस्त्र और धनुविधा का ज्ञान दिया था। इस प्रसंग का महाभारत में उल्लेख है।
सावन के महीने में उमड़ती है भक्तों की खास भीड़ –
ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट पर स्थित है। सावन के महीने में यहां मेला लगता है। दर्शन के लिए लंबी लाइन लगी रहती है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में सावन के महीने में जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती हैं। टपकेश्वर मंदिर में देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। मंदिर जाने के लिए सबसे नजदीक देहरादून रेलवे स्टेशन और बस अड्डा है।
प्राकृतिक और मानव निर्मित का खूबसूरत संगम –
प्रसिद्ध टपकेश्वर मंदिर का वास्तुकला प्राकृतिक और मानव निर्मित का खूबसूरत संगम है। यह मंदिर दो पहाड़ियों के बीच है। शिवलिंग का मुख्य गर्भगृह गुफा के अंदर स्थित है। गुफा का वास्तुकला प्रकृति का अद्भुत नजारा है। महादेव टपकेश्वर का द्वार सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक और 1:30 से शाम के 5:30 तक खुला रहता है।
तप और भक्ति की गाथा सुनाती है यह मंदिर –
उत्तराखंड में पहाड़ की गोद में भगवान टपकेश्वर मंदिर स्वयं शिवजी की महिमा का गुणगान करता है। यह मंदिर तप और भक्ति की गाथा सुनाती है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा ये आर्टिकल पसंद आया होगा।