कौशिक समिति की रिपोर्ट : उत्तराखंड राज्य निर्माण का पहला सरकारी दस्तावेज

उत्तराखंड राज्य बनने की यात्रा में 1994 के साल का बड़ा महत्व है। ये वो साल था जब मुजफ्फरनगर में हुई पुलिसिया बर्बरता की घटना ने समूचे पहाड़ में उबाल ला दिया था।

इस घटना ने राज्य निर्माण आंदोलन की लड़ाई और आंदोलनकारियों के हौसले को पहले से ज्यादा मजबूत कर दिया था। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि इस घटना के अलावा 1994 का, उत्तराखंड राज्य निर्माण की यात्रा से एक और भी वास्ता है ?

जी हां, 1994 का साल वह वर्ष है, जब पहली बार मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने अलग उत्तराखंड राज्य के गठन की सिफारिश करने वाली समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दी थी।

उस समिति का नाम था, रमाशंकर कौशिक समिति ।

रमाशंकर कौशिक समिति का गठन आज से ठीक 29 साल पहले 4 जनवरी 1994 को किया गया था।

रमाशंकर कमेटी की रिपोर्ट वह पहला सरकारी दस्तावेज है जिसने न केवल अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को जायज माना था, बल्कि राज्य की राजधानी के रूप में गैरसैंण को जनता की पहली पसंद भी बताया था।

 

क्या है रमाशंकर कमेटी की कहानी  ? जानते हैं विस्तार से-  

रमाशंकर कौशिक सन 1994 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार में नगर विकास मंत्री थे। वे मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी और भरोसेमंद नेताओं में गिने जाते थे। 5 दिसंबर 1993 को जब मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उनकी अध्यक्षता में हुई पहली कैबिनेट बैठक में अलग उत्तराखंड राज्य गठन पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया। 5 जनवरी 1994 को ये कमेटी अस्तित्व में आई जिसमें अध्यक्ष रमाशंकर कौशिक समेत छह लोग शामिल थे। कमेटी के सचिव तब यूपी सरकार में अहम पद पर तैनात आईएएस अधिकारी आरएस टोलिया थे, जो उत्तराखंड मूल के थे। उत्तराखंड गठन के बाद टोलिया राज्य के मुख्य सचिव भी बने।

बहरहाल, 5 दिसंबर को कौशिक समिति का गठन होने के बाद 12 जनवरी 1994 को लखनऊ में इसकी पहली बैठक हुई।

इसके बाद कमेटी ने 30 और 31 जनवरी को दूसरी बैठक अल्मोड़ा, सात और आठ फरवरी को तीसरी पौड़ी , 17 फरवरी को चौथी काशीपुर और 15 मार्च को पांचवीं बैठक लखनऊ में की।

इन बैठकों में उत्तराखंड के भू-भाग से आने वाले जनप्रतिनिधियों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, तब यहां मौजूद तीनों विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, विभिन्न विषयों के जानकारों, सामाजिक संगठनों एवं कार्यकर्ताओं, विभिन्न वर्गों से जुड़े लोगों, पत्रकारों, अर्थशास्त्रियों, कृषि वैज्ञानिकों तथा आम जनता से चर्चा की गई तथा सुझावों का आदान-प्रदान हुआ।

अलग राज्य को लेकर तमाम बिदुंओं पर मंथन करने के बाद कमेटी ने 13 खंडों में 68 पन्नों की रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को सौंप दी।

इस रिपोर्ट में अलग उत्तराखंड राज्य बनने जाने की मांग को सही करार देते हुए राज्य के स्वरूप को लेकर कई सिफारिशें दी गईं।

रिपोर्ट में कहा गया कि – उत्तराखंड राज्य का गठन आठ पहाड़ी जिलों को मिलाकर किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 68 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की राय में प्रदेश की राजधानी गैरसैंण होनी चाहिए।

रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया कि नए प्रदेश में चकबंदी और भूमि बंदोबस्त किया जाना चाहिए।

इनके अलावा कई अन्य सुझाव रिपोर्ट में शामिल किए गए, जो एक आदर्श उत्तराखंड राज्य बनाने की दिशा में बहुत अहम थे।

30 अप्रैल 1994 को कौशिक समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी जिसके बाद 21 जून को मुलायम सरकार ने रिपोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया।,

दो जून को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखंड के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव की नियुक्ति की जिसके बाद पृथक राज्य बनने की उम्मीदों को और बल मिल गया।

ढाई महीने बाद 24 अगस्त 1994 को उत्तरप्रदेश विधानसभा में ‘उत्तराखंड राज्य निर्माण विधेयक’ पास कराने के बाद सात सितंबर को केंद्र सरकार को भेज दिया गया।

लेकिन इस बीच पहले सितंबर में खटीमा और मसूरी तथा उसके बाद 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में हुए गोलीकांड ने मुलायम सिंह यादव को खलनायक बना दिया। इन हत्याकांडों के घाव आज तक उत्तराखंडियों के सीने में मौजूद हैं।

चार साल बाद 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य निर्माण की घोषणा की। देवेगोड़ा की घोषणा के बाद सन 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने उत्तराखंड राज्य सम्बन्धी विधेयक उत्तर प्रदेश विधान सभा की सहमति के लिए भेजा। केंद्र से भेजे गए विधेयक में 26 संशोधन करने के बाद तत्कालीन यूपी सरकार ने इसे वापस केन्द्र सरकार को भेज दिया। 22 दिसम्बर 1998 को वाजपयी सरकार ने यह विधेयक लोकसभा में पेश किया, लेकिन उनकी सरकार गिरने के चलते विधेयक पास नहीं हो पाया।

इसके बाद सत्ता में फिर से वापसी के बाद अटल सरकार ने 27 जुलाई 2000 को ‘उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000’ के नाम से लोकसभा में पेश किया। 1 अगस्त 2000 को लोकसभा और 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा से पास कराने के बाद विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया। 28 अगस्त को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने विधेयक को मंजूरी दे दी जिसके बाद 9 नवंबर 2000 को अलग राज्य के रूप में उत्तरांचल यानी उत्तराखंड देश के नक्शे पर अंकित हो गया।

इस पूरे घटनाक्रम में कौशिक समिति की रिपोर्ट का योगदान, उत्तराखंड राज्य निर्माण की प्रक्रिया में पहले सरकारी दस्तावेज के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा।

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