देहरादून। पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) के झाझरा सब स्टेशन में पिछले महीने लगी आग की लपटें दिल्ली तक पहुंच गई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन ने जांच पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड से पूरे प्रकरण की जांच कराने का निर्णय लिया है। इसके बाद पावर ग्रिड के अधिकारी और इंजीनियर झाझरा सब स्टेशन पर पहुंचकर मामले की जांच कर रहे हैं।
बता दें कि पिछले महीने झाजरा सब स्टेशन में करीब तीन मिनट तक तेज धमाके हुए और आग लगी थी। जिससे लाइन टाइप करने वाले ब्रेकर जल कर खाक हो गए थे। इस दौरान डी0सी0 फेल होने के चलते आइसोलेटर भी काम नहीं कर पाए। यह भी पता चला है कि कुछ महीने पहले ही अर्थिंग भी करवाई गई थी। पर एन मौके पर सुरक्षा के सारे इंतजाम धरे के धरे रह गए। जिससे यह भी संदेह उत्पन्न हो रहा है कि कहीं सारे काम केवल कागजो तक ही तो सीमित नहीं हैं।
पिटकुल के प्रभारी एमडी पीसी ध्यानी ने तीन सदस्यीय समिति गठित करते हुए 15 दिन में रिपोर्ट मांगी थी। प्रथम दृष्ट्या ये अधिकारी ही विद्युतघर की सुरक्षा के लिए उत्तरदाई थे। इसके चलते समिति पर सवालिया निशान लग गया था। इसी दौरान करीब 3 दिन बाद दोबारा पिटकुल में ट्रांसफार्मर ट्रिप हो गया था इधर पिटकुल प्रबंधन ने यूपीसीएल के ट्रांसफार्मर में फाल्ट को इसकी वजह बताया था।
गनीमत यह रही कि इन सबस्टेशन के इन फर्जी सुरक्षा इंतजामों के कारण बड़ा हादसा होने से बच गया। यदि इस सबस्टेशन की कोई लाइन कहीं रियायशी इलाके में टूट जाती तो प्रोटेक्शन सिस्टम के सक्रिय नहीं होने से भारी जन हानि हो सकती थी।
मामले का संज्ञान लेते हुए 24 जुलाई को सचिव ऊर्जा आर मीनाक्षी सुंदरम ने विद्युत सुरक्षा विभाग को दो दिन के भीतर जांच रिपोर्ट देने को कहा था। परंतु विद्युत सुरक्षा विभाग 220 kv से संबंधित पर्याप्त तकनीकी क्षमता के अभाव इसकी जांच नहीं कर पाया। अब पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन से अधिकारियों और इंजीनियरों की टीम यहां पहुंची है। सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि पिटकुल की ओर से पावर ग्रिड के अधिकारियों और इंजीनियरों को भी गफलत में रखा जा रहा है।
बताया जा रहा है कि अग्निकांड में चार ब्रेकर जल गए थे लेकिन दिल्ली से आई टीम को केवल दो ब्रेकर ही दिखाये जा रहे हैं जबकि दो स्टोर में छुपा दिए गए थे। अब देखना यह है कि एक बड़े पद पर बैठे गैर तकनीकी अधिकारी जो कि जोड़-तोड़ और तथ्यों को छुपाने में माहिर हैं क्या वह इस बार भी पूरे प्रकरण पर लीपा पोती कर देते हैं या दिल्ली की टीम दूध का दूध पानी का पानी कर पाती है।
बताया तो यहां तक जा रहा है कि पिटकुल के यह तिकड़मबाज अधिकारी अपनी कुर्सी बचाने के चक्कर में शासन के सामने तस्वीर स्पष्ट नहीं होने देना चाहते हैं। अब सवाल यह भी है कि आखिर सरकार कब तक इस अयोग्य गैर तकनीकी अधिकारी से प्रेम के चलते प्रदेश के बीजलीघरों को खतरे में डाल कर रखती है। फिलहाल झाझरा बीजलीघर के प्रकरण की जांच के बाद कुछ स्पष्ट हो पाएगा।