इन्द्रमणि बडोनी : उत्तराखंड के गांधी
यदि आपको जीवित और चलते -फिरते गाँधी को देखना है तो आप उत्तराखंड की धरती पर चले जाएँ। वहां गाँधी आज भी अपने उसी अहिंसक अंदाज में बड़े जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहा है।
ये शब्द थे अंतराष्ट्रीय समाचार चैनल बीबीसी के । जब उत्तराखंड राज्य आंदोलन अपने चरम पर था तब ये पंक्तियां बीबीसी ने इंद्रमणि बडौनी के लिए कही थी।
कौन थे इंद्रमणि बडौनी और क्यों कहते थे उन्हें उत्तराखंड का गांधी ?
24 दिसम्बर 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोडी गांव में इंद्रमणि बडौनी का जन्म हुआ।
पहाड़ में रहने वाले हर उत्तराखंडी की तरह इन्द्रमणि बडोनी भी एक साधारण परिवार में जन्मे लेकिन राज्य के लिए उनका त्याग और समर्पण असाधारण था।
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से की बाद में उन्होंने देहरादून से स्नातक किया, स्नातक के बाद अपनी आजीविका चलाने के लिए वे मुम्बई गए लेकिन मुम्बई उन्हें रास न आया।
वहां उनकी तबियत बिगड़ी और वे वापस अपने गांव आ गए। उन्होंने गांव को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाकर गांव का ही उत्थान करना चाहा और समाज सेवा में जुट गए, बाद में वे अपने गांव के प्रधान बन गए ।
उत्तर प्रदेश राज्य में उन्होंने 3 बार देवप्रयाग विधानसभा से चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गए, इसके बाद साल 1970 में निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए उन्होंने कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों को एकतरफा मात दी।
दुनिया भर के सैलानी आज जिस खतलिंग ग्लेशियर, पावली कण्ठा और सहस्त्र ताल को देखने आते हैं वहां सबसे पहले यात्रा इंद्रमणि बडोनी ने ही की।
उन्होंने देश के कई राज्यों में पहाड़ की विरासत और संस्कृति को फैलाया, एक बार जब उत्तराखंड में पांडव नृत्य देखने स्वयं पंडित नेहरू आए थे तो पांडव नृत्य की धुन पर पंडित नेहरू भी थिरके।
साल 1980 में वे उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़ गए और राज्य के विकास के लिए खूब संघर्ष किया
1989 में उन्होंने सांसद का चुनाव लड़ा लेकिन करीब 10 हज़ार वोटों से हार गए लेकिन उनका संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ ।
90 के दशक में उत्तराखंड राज्य आंदोलन अपने चरम पर था। पहाड़ और मैदान, हर तरफ एक ही गूंज थी। “बाड़ी मंडुआ खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे”
बागेश्वर के चर्चित उत्तरायणी मेले में उन्होंने उक्रांद की ओर से जनसंपर्क किया और इसी दौरान गैरसैण को पहाड़ की राजधानी घोषित करके चंद्रनगर नाम से शिलान्यास किया।
इंद्रमणि बडोनी पृथक उत्तराखंड आंदोलन के मुख्य सूत्रधार थे। राज्य आंदोलन के दौरान वे टिहरी के मुख्य ऑडिटोरियम के आगे अचानक आमरण अनशन पर बैठ गए, पांच दिन बाद उनकी हालत बिगड़ी तो उन्हें मेरठ अस्पताल भर्ती करवाया गया लेकिन वहां भी वे अनशन पर बैठे रहे और 30 दिन बाद अपना अनशन समाप्त किया।
साल 1994 में हुए खटीमा गोली कांड और मसूरी गोली कांड से उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के हृदय में वो ज्वाला प्रस्फुटित हुई जिस ज्वाला के दम पर आज हमें ये राज्य मिला है।
खटीमा और मसूरी गोलीकांड के विरोध में इंद्रमणि बडौनी ने पूरे दल-बल समेत लखनऊ कूच किया लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में ही रोक लिया जिसके बाद उन्हें सहारनपुर जेल भेजा गया। जेल से बाहर आने के बाद दिल्ली में आंदोलन किया और इसी आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर कांड हो गया इस कांड से पूरे देश का दिल दहल उठा। उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकारी उस दिन को याद करके आज भी सिहर उठते है ।
लगातार आंदोलनों और पुलिस की मार के कारण इंद्रमणि बडौनी का स्वास्थ्य उनका साथ छोड़ने लगा, वे लगातार बीमार होने लगे और अस्पताल में भर्ती होते रहे।
उनकी दोनों किडनीज़ खराब हो गई और किडनी डायलसिस के लिए भी उनके पास पर्याप्त धन न रहा जिसके चलते 18 अगस्त 1999 को उनका आविर्भाव हो गया। उनकी मौत के एक साल के बाद ही उन्हें उनके परम संघर्षों का फल मिला और 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड देश का 27वां राज्य बना।