कब तक सीएम धामी के ‘कंठाहार’ बने रहेंगे प्रेमचंद अग्रवाल ?

नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा उत्तराखंड विधानसभा में हुई बैकडोर भर्तियों को रद्द करने के विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी के निर्णय को सही करार दिए जाने के बाद ये भर्ती घोटाला फिर से चर्चाओं में आ गया है।

पिछले महीने हाईकोर्ट की एकल पीठ ने स्पीकर के आदेश पर रोक लगाते हुए बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने के निर्देश दिए थे जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने इस निर्णय को चुनौती दी थी।

बीते रोज मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को रद्द करते हुए विधानसभा अध्यक्ष द्वारा की गई बर्खास्तगी की कार्रवाई को सही करार दिया।

हाईकोर्ट की डबल बैंच के इस आदेश से बैकडोर एंट्री से विधानसभा में नौकरी पाने वाले लोगों को तो बड़ा झटका लगा ही, साथ ही इस आदेश ने वर्तमान कैबिनेट मंत्री और पिछली सरकार के कार्यकाल में विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है।

दरअसल विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने जिन भर्तियों को रद्द करने का आदेश दिया था, उनमें 72 नियुक्तियां प्रेमचंद अग्रवाल के स्पीकर रहने के दौरान हुई थी।

ठीक विधानसभा चुनाव से पहले हुई इन भर्तियों को लेकर जब हंगामा हुआ तो वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने न केवल इनकी बल्कि वर्ष 2012 से अब तक विधानसभा में हुई सभी नियुक्तियों की जांच एक एक्सपर्ट कमेटी को सौंप दिया।

महीनेभर के भीतर इस कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट स्पीकर को सौंपी जिसमें कुल 250 भर्तियों को नियम विरुद्ध बताते हुए इन्हें रद्द करने की शिफारिश की।

इनमें 2016 में हुईं 150 तदर्थ नियुक्तियां, 2020 में छह नियुक्तियां,  2021 में हुईं 72 नियुक्तियां और उपनल के माध्यम से हुईं 22 नियुक्तियां शामिल थीं।

एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश के बाद स्पीकर खंडूरी ने इन भर्तियों को रद्द करने का आदेश जारी किया। स्पीकर खंडूरी के इस आदेश ने उत्तराखंड विधानसभा में होने वाली नियुक्तियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को बेपर्दा करने के साथ ही दो पूर्व विधानसभा अध्यक्षों गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल की ‘ईमानदारी’ और ‘संवौधानिक प्रतिबद्धता’ को भी बेपर्दा कर दिया।

नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद मंत्री पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुके प्रेमचंद अग्रवाल को यूं तो तभी मंत्रिमंडल से हटा दिया जाना चाहिए था, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपना हाथ उनके सर पर बनाए रखा।

इसके महीने भर बाद नैनीताल हाईकोर्ट की एकल पीठ ने स्पीकर के आदेश पर रोक लगाकर बर्खास्त कर्मियों को बहाल करने का निर्देश दे दिया जिसके बाद कुछ वक्त के लिए ही सही, ये मुद्दा ठंडा पड़ गया।

इस बीच प्रेमचंद अग्रवाल पूरी ठसक के साथ न केवल धामी मंत्रिमंडल में बने रहे, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ दौरे के वक्त उनके साथ भी मौजूद रहे।

हाईकोर्ट की एकल पीठ के आदेश का हवाला देकर प्रेमचंद अग्रवाल खुद को पाक साफ बताने की भी खूब कोशिश करते रहे, मगर बीते रोज डबल बैंच के निर्णय ने एक बार फिर उनकी ‘ईमानदारी’ को बेपर्दा कर दिया है।

हाईकोर्ट की डबल बेंच द्वारा स्पीकर खंडूरी के आदेश को सही करार दिया जाना इस बात का सीधा प्रमाण है कि विधानसभा नियुक्तियों में नियम कायदों को तार-तार कर किस कदर भ्रष्टाचार किया गया।

ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या इस इस भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार तत्कालीन विधानसभा अध्यक्षों गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ?

पहले जांच कमेटी की रिपोर्ट और अब हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश के बाद साफ हो गया है कि राज्य बनने के बाद उत्तराखंड विधानसभा में सर्वोच्च पद पर आसीन इन दो महानुभावों ने नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाने और नैतिकता को कूड़ेदान में डालने का अपराध किया है।

यानी, जिन्हें इस सदन की आन,बान और शान की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई, उन्होंने ही इसकी गरिमा को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

2012 से 2017 तक स्पीकर रहे कांग्रेसी, गोविंद सिंह कुंजवाल और उसके बाद 2017 से 2022 तक यह जिम्मेदारी निभाने वाले भाजपाई, प्रेमचंद अग्रवाल की करतूतों ने विधानसभा अध्यक्ष जैसे गरिमामय पद की प्रतिष्ठा को ऐसी चोट पहुंचाई है, जिसके निशान हमेशा बने रहेंगे।

ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि विधानसभा अध्यक्ष जैसे पद की गरिमा को तार-तार करने वाले इन नेताओं के खिलाफ एक्शन कब होगा ?

विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी द्वारा इन भर्तियों को रद्द किए जाने के आदेश को हाईकोर्ट द्वारा सही ठहराए जाने के बाद अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की असल परीक्षा है।

सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, प्रेमचंद अग्रवाल को न केवल कैबिनेट से बाहर कर बल्कि उनके और उनसे पहले के स्पीकर रहे गोविंद सिंह कुंजवाल के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई का आदेश देकर बड़ी नजीर पेश करेंगे ?

गौर करने वाली बात यह है कि प्रेमचंद अग्रवाल धामी कैबिनेट में किसी छोटे-मोटे नहीं बल्कि संसदीय कार्य और वित्त जैसे अहम विभागों के मंत्री हैं।

याद कीजिए, विधानसभा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी का मामला तूल पकड़ने के बाद सीएम धामी ने जब स्पीकर ऋतु खंडूरी से जांच का आग्रह किया था तो तब उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़े एक्शन की बात भी कही थी। अब जब कड़े एक्शन का वक्त आ गया है तो धामी को बिना समय गंवाए बड़ी लकीर खींच देनी चाहिए।

अगर मुख्यमंत्री धामी ऐसा नहीं कर पाए तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का उनका दावा जुमला साबित हो जाएगा।

 यह भी पढे़ :   विधानसभा भर्ती घोटाला : बर्खास्त कर्मचारियों को बड़ा झटका, हाईकोर्ट ने एकल पीठ के फैसले पर लगाई रोक

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