अपनी जमीनों पर बाहरी लोगों द्वारा कब्ज़ा न हो पाए इसके लिए राज्य भर के लोगो ने हुंकार भर ली है। प्रदेश भर के लोगों ने राज्य में भू-कानून की मांग को लेकर मूल निवास स्वाभिमान महारैली का आयोजन हुआ। अपने अपने हकों की लड़ाई लड़ने के लिए सड़कों पर एक बड़ा हुजूम उमड़ पड़ा। राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों संग बड़ी संख्या में युवा भी शामिल हो रहे है।
भू-कानून और मूल निवास 1950 को लागू करने की मांग को लेकर हल्द्वानी में भी उत्तराखंड मूल निवास स्वाभिमान को लेकर आवाज़ बुलंद की गई। मूल निवास भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति द्वारा महारैली का आयोजन किया गया। सभी क्षेत्रों में पहुंच कर लोगों को जागरूक किया गया। वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड राज्य 23 साल बाद भी अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है। मूल निवासियों को उनका हक़ नहीं मिल पाया है।
संघर्ष समिति की ये हैं प्रमुख मांगें
– प्रदेश में ठोस भू कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
– ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
बता दें की सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उच्च स्तरीय बैठक में निर्देश दिए थे कि भू-कानून के लिए बनाई गई कमेटी बड़े पैमाने पर जन सुनवाई करे। कई क्षेत्रों से जुड़े लोगों और विशेषज्ञों की राय लें। भू-कानून के लिए विकेंद्रीकृत व्यवस्था के तहत गढ़वाल और कुमाऊं कमिश्नर को भी शामिल किया जाए।