देशधर्म-संस्कृति

नहाय खाय के साथ आज से शुरू होगा छठ पर्व

बिहार की संस्कृति को दर्शाता छठ पर्व नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है। छठ पूजा में छठ व्रतियों द्वारा सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा कर और उन्हें अर्ध्य देने की परंपरा है।

हर साल हिंदू माह कार्तिक मास के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से होता है और षष्ठ तिथि को कठिन व्रत रख कर अगले दिन सप्तमी को इसका पारण किया जाता है। छठ पूजा में छठ व्रतियों द्वारा सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा कर और उन्हें अर्ध्य देने की परंपरा है।

छठ पूजा के चार दिन:
पहले दिन नहाया खाय के साथ शुरुवात होती हैं।
दूसरे दिन को खरना,
तीसरे दिन को सांध्य अर्घ्य
और चौथे दिन को उषा अर्घ्य कहते हैं।

छठ पूजा के पहले दिन नहाया खाय के यह होते है नियम:

पहले दिन घर, पूजाघर आदि की अच्छे से साफ सफाई की जाती है जिसके बाद स्नान कर खुद भी स्वच्छ होते है। इसी दिन घर को अंदर और बाहर से भी शुद्ध किया जाता है। कहते है की इस दिन नए वस्त्र धारण करने चाहिए।

शुद्ध शाकाहारी भोजन का सेवन किया जाना चाहिए। लौकी या कद्दू की सब्जी बनाना इस दिन बहुत ही शुभ माना गया है। साथ ही याद रहे की भोजन में सेंधा नमक का उपयोग किया जाता हैं।

महिलाओं द्वारा नारंगी सिंदूर लगाने के बाद छठ का प्रसाद बनाना भी शुरू किया जाता है और उसमें प्याज और लहसुन के प्रयोग पर मनाही होती है।

छठ मैया और सूर्य देव को भोग लगाने के बाद से ही भोजन ग्रहण किया जाता है। व्रती के प्रसाद को सभी को बांटकर खाया जाता है।

यही प्रक्रिया अगले दिन भी की जाती है।

छठ पर्व का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करती है जिसे करना कहा जाता है करने के प्रसाद को चावल को गाने के रस में बनाकर या दूध में बनाकर चावल का पीठ और चुपड़ी रोटी बना कर भरोसा जाता है शाम के समय पूजा पाठ करने के बाद व्रत करने वाली महिला आई है प्रसाद खाती है और बाद में सभी सदस्यों को भी वही प्रसाद खाने पर मिलता है।

तीसरे दिन पहला अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाली व्रतिया दिन भर दलिया और सूप में नाना प्रकार के फल ठीक हुआ चावल का लड्डू चीनी का सांचा आदि को लेकर शाम को बहते हुए पानी पर जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते हुए परिवार के सभी सदस्य अर्घ्य देते हैं और फिर शाम को घर वापस आते हैं जिसके पास घर में माता के गीत गाए जाते हैं।

चौथी और अंतिम दिन सुबह का अर्घ्य छठ व्रती को सूर्य उगने से पहले ही फिर से इस तालाब पर जाना होता है जहां वह पहले दिन गए थे इस दिन उगते हुए सूर्य को करके देकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान सूर्य से प्रार्थना करते हैं परिवार के अन्य सदस्य भी वृद्धि के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।

छठ पूजा का व्रत 36 घंटे से भी अधिक का होता है। छठ व्रतियों को चार दिनों के कठिन व्रत करने के बाद चौथे दिन पारण करना होता है और प्रसाद का आदान-प्रदान कर व्रत सम्पन्न किया जाता है।

छठ पूजा की पौराणिक कथा:

वैसे तो छठ पूजा को लेकर कई कथाएं प्रचलित है लेकिन उन्ही में से सबसे अहम कथा यह है कि पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button