जन्मदिन विशेष : परिपूर्णानंद पैन्यूली, राजशाही को धूल चटाने वाले नायक
आजादी के सिपाही, टिहरी रियासत के खिलाफ बगावत का झंड़ा उठाने वाले शहीद श्रीदेव सुमन के साथी रहे परिपूर्णानंद पैन्यूली उत्तराखंड की वह हस्ती हैं जिनका पूरा जीवन संघर्ष, स्वाभिमान और देशभक्ति का दस्तावेज है।
युवा अवस्था में जब हर कोई अपने बेहतर भविष्य के सपने देखता है, तब परिपूर्णानंद पैन्यूली ने देश की आजादी के लिए लड़ने का रास्ता चुना। टिहरी रियासत के जुल्मों के खिलाफ संघर्ष का रास्ता चुना और अदम्य जीवट के दम पर इस संघर्ष को कामयाबी तक पहुंचाया।
वे न केवल टिहरी रियासत के भारत में विलय की ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने बल्कि उसके बाद आजाद भारत में राजशाही के प्रतिनिधि को मात देकर टिहरी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया। ऐसे अमर सपूत परिपूर्णानंद पैन्यूली के जन्मदिन पर आइए उनकी प्रेरणादायी जवनयात्रा के रूबरू होते हैं।
परिपूर्णानंद पैन्यूली का जन्म 19 नवंबर 1924 को टिहरी रियासत के छौल गांव में हुआ था। उनके दादा राघवानंद पैन्यूली टिहरी रियासत के दीवान थे और पिता कृष्णानंद पैन्यूली जूनियर इंजीनियर। उनकी माता का नाम एकादशी देवी था। जिस वक्त परिपूर्णानंद पैन्यूली अपने बाल्यकाल से किशोरावस्था की तरफ बढ़ रहे थे, तब राजशाही के खिलाफ टिहरी में बगावत की ज्वाला सुलग रही थी। वर्षों से राजशाही के जुल्मों से परेशान जनता सही वक्त का इंतजार कर रही थी। ये वो दौर था जब टिहरी की सत्ता राजा नरेंद्र शाह के हाथों में थी। इस दौर में श्रीदेव सुमन टिहरी राजशाही के खिलाफ जनता का चेहरा बन चुके थे। किशोर परिपूर्णानंद पैन्यूली के मन में भी राजशाही के खिलाफ विद्रोह के बीच पनपने लगे और देखते-देखते वे भी आजादी और राजशाही के खिलाफ आंदोलन में कूद पड़े। सन 1942 में 18 साल की उम्र में परिपूर्णानंद पैन्यूली को भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता के चलते 5 साल के लिए मेरठ जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद वे फिर से आजादी और राजशाही के खिलाफ संघर्ष में जुट गए।
इस बीच राजशाही के खिलाफ संघर्ष करते हुए 25 जुलाई 1944 को 83 दिन की भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन की शहादत हो गई। सुमन की शहादत के बाद राजशाही के खिलाफ जनता का आक्रोश और भी बढ़ गया।
दूसरी तरफ सत्ता का दमन जारी रहा और रियासत का विरेध करने वाले आंदोलनकारी गिरफ्तार होते रहे। इस दौरान युवा नागेंद्र सकलानी और दौलत राम के साथ परिपूर्णानन्द पैन्यूली को भी गिरफ्तार कर लिया गया। 10 दिसंबर 1946 को परिपूर्णानंद पैन्यूली जेल से फरार हो कर दिल्ली पहुंच गए।
दिल्ली पहुंच कर उन्होंने राजशाही का विरोध जारी रखा। इस बीच देश में आजादी को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थी लेकिन टिहरी अभी भी राजशाही के चंगुल में फंसी थी। आजादी के समय देश में लगभग 565 थीं जिनके भारत संघ में विलीनीकरण की प्रक्रिया चल रही थी।
10 जनवरी 1948 को युवा नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी की शहादत की घटना हुई जिसने टिहरी रियासत के ताबूत में अंतिम कील का काम किया।
इस घटना के बाद राजा के खिलाफ जनता ने निर्णायक जंग छेड़ दी जिसमें अंतत जनता की जीत हुई। 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत आजाद भारत का हिस्सा बन गई।
टिहरी रियासत को आजाद भारत में विलय कराने में परिपूर्णानंद पैन्यूली का योगदान अविस्मरणीय है। आजादी के बाद भी राजशाही के खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहा। टिहरी रियासत के खिलाफ लड़ाई लडने वाले परिपूर्णानंद पैन्यूली 1971 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े और टिहरी रियासत के महाराजा मानवेंद्र शाह को हराकर लोकसभा पहुंचे। 1972-74 में वे यूपी-हिल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के पहले चेयरमैन रहे। उन्होंने संसद में लोक लेखा समिति, संयुक्त संसदीय समिति समेत कई संसदीय समितियों में अहम जिम्मेदारियां निभाई। वे 35 वर्ष तक पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय रहे। उन्होंने विद्यार्थी परिषद, देशी राज्य और जनांदोलन, संसद व संसदीय प्रक्रिया समेत दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिखी। भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने 1996 में परिपूर्णानंद पैन्यूली को डॉ. भीमराव अंबेडकर अवॉर्ड से नवाजा। 13 अप्रैल 2019 को 95 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली।