अभिव्यक्ति पर डंडा : सरकार बहादुर खामोश
उत्तराखंड की मित्र पुलिस की आज की इस शानदार कार्रवाई की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है…
इस कार्रवाई का आदेश देने वाले अफसरों की जितनी पीठ थपथपाई जाए, उतनी कम है…
सरकार बहादुर के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाने वालों को इसी तरह सबक सिखाया जाना चाहिए था…
भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच की मांग करने वालों को इसी तरह दौड़ाया जाना चाहिए था…
सीबीआई जांच की मांग ऐसे कर रहे हैं मानो, देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के पास कोई काम ही नहीं है…
कई वर्षों से रोजगार-रोजगार चिल्ला रहे इन युवाओं को सरकार के खिलाफ नारेबाजी के लिए क्या यही वक्त मिला ?
क्या इन्हें नहीं मालूम कि देश में आजादी का अमृतकाल चल रहा है ?
क्या इन्हें नहीं मालूम कि जिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ ये मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे, उन्हें कुछ दिन पहले ही सबसे हैंडसम मुख्यमंत्री की उपमा से विभूषित किया गया है।
पूरे प्रदेश को गदगद करने वाले ऐसे मंगलमय माहौल में विरोध प्रदर्शन जैसा अमंगल करने पर लाठी नहीं तो क्या फूल मिलने चाहिए थे ?
आज की इस घटना को लेकर यूं तो उत्तराखंड पुलिस और धामी सरकार की तारीफ में पूरा महापुराण लिखा जा सकता है, मगर समय की जरूरत को देखते हुए अब मुद्दे की बात करते हैं…
मुद्दे की बात ये है कि आखिर आज जो हुआ, जैसा हुआ, क्या उसे रोका नहीं जा सकता था ?
बेरोजगार युवाओं के प्रदर्शन को शांत करने के लिए क्या लाठीचार्ज ही एकमात्र उपाय था ?
मामले की गंभीरता को समझते हुए क्या मुख्यमंत्री धामी को कमान अपने हाथ में नहीं लेनी चाहिए थी ?
क्या उन्हें खुद आगे आकर युवाओं के साथ संवाद नहीं करना चाहिए था ?
दूसरा अहम सवाल यह है कि सुरक्षित भविष्य की उम्मीद में दिन रात परीक्षाओं की तैयारी करने वाले इन युवाओं को इतना बड़ा प्रदर्शन करने पर किसने मजबूर किया ?
एक के बाद एक भर्ती घोटाले के खुलासे से निराश ये युवा अगर सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है ?
भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का राग आलापने वाली सरकार आखिर सीबीआई जांच से क्यों कतरा रही है ?
मित्रता सेवा और सुरक्षा का नारा देने वाली पुलिस ने आज न मित्रता दिखाई, न सेवा की और न ही सुरक्षा की परवाह की।
जिस तरह की बर्बरता पुलिस ने आज दिखाई उससे लगा मानो ये कोई आम युवा नहीं बल्कि पेशेवर अपराधी हों ।
घटना स्थल पर जो हालात थे उसके एक-एक लफ्ज का बखान करना मुश्किल है । पुलिस ने जिस तरह लाठीचार्ज किया, फिर घसीट कर युवाओं को गाड़ियों में भरा गया इन तस्वीरों के जरिए आपके सामने है…
लेकिन सवाल ये उठता है की इस पूरी घटना का जिम्मेदार कौन है ?
ये मसला शुरू से समझते हैं-
बीते रोज बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार के नेतृत्व में सैकड़ों य़ुवा गांधी पार्क में जमा हुए और सरकार के खिलाफ जमकर रोष जताया, इस आंदोलन को युवाओं ने सत्याग्रह नाम दिया । इसके बाद रात में धरनास्थल पर बैठे युवाओं की गिरफ्तारी की गई। आरोप है कि गिरफ्तारी के लिए पहुंचे पुलिस कर्मी नशे में थे और उनके साथ कोई महिला पुलिस भी नहीं थी। युवाओं ने पुलिसकर्मियों पर प्रदर्शनकारी युवतियों के साथ अभद्रता का आरोप भी लगाया।
रात बीतने के बाद आज सुबह से ही युवाओं ने गांधी पार्क के बाहर धरना शुरू कर दिया था। देखते –देखते सैकड़ों की भीड़ हजारों में तब्दील हो गई और गांदीपार्ट से घंटाघर तक युवाओं से पट गया।
इस दौरान घंटों तक ट्रैफिक जाम हो गया जिसके बाद पुलिस बल ने डंडों के दम पर युवाओं को खदेड़ दिया।
लाठीचार्ज के बाद प्रदर्शनकारी युवाओं की तरफ से भी पत्थरबाजी की गई, जिसके बाद पुलिस और सरकार को प्रदर्शनकारियों पर निशाना साधने का मौका मिल गया है। हाथ आए इस मौके को कैसे भुनाना है, इसे सरकार बहादुर अच्छी तरह जानती है ।
बहुत संभव है कि सरकार इस मौके को भुनाने में कामयाब भी हो जाएगी, मगर तब भी असल-सवाल अपनी जगह पर बने हुए हैं। आज की घटना के बाद तो इन सवालों ने धामी सरकार के लिए मुसीबतों की बुनियाद डाल दी है।