हम अपनी रोज़ाना की ज़िंदगी में कई अजीबों-गरीब मामले सुनते है और कई मामले तो हमारी कल्पनिकताओं से भी परे होती है। भारत में लोगों द्वारा हमेशा से ही अपने अपने कुलदेवताओं की पूजा करने की प्रथा चलती आ रही है। लेकिन क्या हो जब किसी को यह पता चले की वर्षो से जिस पत्थर को उनके पुर्ज अपने कुलदेवता के रूप में पूजते चले आ रहे है वह उनके कुलदेवता नहीं बल्कि डायनासोर के अंडे है।
जी हाँ, मध्य प्रदेश के धार जिले के पाड़लिया गांव से ऐसा ही हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। गांव में रहने वाले लोगों को खेतों में खुदाई के दौरान मिले गोल पत्थरों को अपने कुलदेवता ‘काकड़ भैरव’ समझ कर पूजते थे। लोगों का कहना है कि यह मान्यता कई पीढ़ियों से चली आ रही थी । ये ‘देवता’ उनके खेत-खलिहानों और जानवरों की रक्षा करते थे ।
ऐसे चला पता:
बीते दिनों लखनऊ के पुराविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक बीरबल साहनी धार के गांव पाड़लिया पहुंचे तो उन्हें इन पत्थरों के बारे में पता चला जहां गांव के लोग कुछ गोल आकार के पत्थरों की पूजा कर रहे थे। जिसके बाद इन पत्थरों की जांच की गई तो पता चला कि यह ‘कुलदेवता’ नहीं डायनोसोर के अंडे थे।
जानकारी के मुताबिक नर्मदा घाटी का यह इलाका करोड़ों वर्ष पहले डायनासोर के युग से जुड़ा हुआ है। यहां पर करीब 7 करोड़ साल पहले डायनासोर का क्षेत्र हुआ करता था। इस इलाके में पहले भी कई बार डायनासोर के अंडे निकल चुके हैं।