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Uttarakhand News: कठबद्दी मेले में रचा भक्ति का अद्भुत संसार

Uttarakhand News: पौड़ी गढ़वाल के ग्वाड़ गांव में कठबद्दी मेले की धूम, आस्था और उत्साह के गवाह बने हजारों श्रद्धालु

Uttarakhand News: पौड़ी गढ़वाल: जनपद पौड़ी में खिर्सू के ग्वाड़ गांव में इस वर्ष भी आस्था, परंपरा और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिला. रविवार और सोमवार को आयोजित पारंपरिक कठबद्दी मेले में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. हर साल ग्वाड़ और कोठगी गांवों में बारी-बारी से आयोजित होने वाला यह मेला इस बार ग्वाड़ में अद्भुत धूमधाम से संपन्न हुआ.  रविवार को गांव में देवताओं की पूजा-अर्चना के साथ मेले का आगाज हुआ. रातभर ढोल-दमाऊं की गूंज के बीच जागरण और देव मंडाण से माहौल भक्तिमय बना रहा. सोमवार सुबह देव स्नान और विधिवत पूजा के बाद कुल देवताओं का अवतरण हुआ. देव शक्ति के आवाहन के साथ कठबद्दी का रोमांचक दृश्य सामने आया. गांव के पंचायत चौक में सिर पर पारंपरिक पगड़ी, माथे पर लाल टीका, हाथ में चमचमाती तलवार और कमर में लटकती तलवार के साथ कठबद्दी का भव्य श्रृंगार किया गया.

Uttarakhand News: कठबद्दी मेले में उमड़ा श्रद्धा और संस्कृति का सैलाब:

जैसे ही ढोल-दमाऊं की ताल पर कठबद्दी को रस्सियों के सहारे आगे बढ़ाया गया, श्रद्धालु भावविभोर होकर जयकारे लगाने लगे. देखते ही देखते कठबद्दी तीन सौ मीटर की दूरी तक खिसकाई गई. हर कदम पर श्रद्धा की लहर उमड़ती रही. पूजा-अर्चना और कुल देवताओं के आशीर्वाद के साथ मेला विधिवत संपन्न हुआ. इस दौरान राइका खिसूं के खेल मैदान में लगी दुकानों में खरीदारी के लिए भी भारी भीड़ उमड़ी. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर किसी के चेहरे पर उल्लास साफ झलक रहा था. मेला समिति के अध्यक्ष सते सिंह ने बताया कि कठबद्दी मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रवासी ग्रामीणों को जोड़ने वाला एक सांस्कृतिक उत्सव भी है. हर साल दूर-दराज से लोग इसमें शिरकत करते हैं और अपनी जड़ों से जुड़ने का अहसास करते हैं.

Uttarakhand News: ये है कठबद्दी का मतलब:

कठबद्दी शब्द गढ़वाली भाषा का है. इसमें कठ का अर्थ होता है, खिंचाव या खिसकाना. बद्दी का अर्थ रस्म या परंपरा से है. इस रस्म में विशेष रूप से गांव के कुल देवताओं (स्थानीय देवताओं) के प्रतीक चिन्ह या मूर्तियों को रस्सियों के सहारे खिसकाकर एक नियत दूरी तक ले जाया जाता है. यह प्रक्रिया बेहद पवित्र मानी जाती है. माना जाता है कि सदियों पहले जब गांव बसाए गए थे, तब गांवों की रक्षा और समृद्धि के लिए कुल देवताओं की पूजा-अर्चना होती थी. कठबद्दी जैसे आयोजन उन्हीं परंपराओं का एक जीवंत प्रतीक हैं. गढ़वाल में प्राचीन परिवार समूहों और देवगुरुओं के मार्गदर्शन में ये मेले स्थापित हुए.

 

Uttarakhand News:शक्ति और एकता का प्रतीक है ये मेला:

कठबद्दी रस्म मूल रूप से देवताओं की शक्ति और गांव की एकता का प्रतीक मानी जाती है. जब सामूहिक रूप से कठबद्दी को खिसकाया जाता है, तो यह संकेत देता है कि गांववासी एकजुट होकर हर बाधा को पार कर सकते हैं. इस मेले में देवताओं की शक्ति का आह्वान कर अच्छी फसल गांव की सुरक्षा और समृद्धि की कामना की जाती है. ग्रामीण मानते हैं कि मेले के दौरान कुल देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने से पूरे वर्ष सुख-शांति बनी रहती है. कठबद्दी को खिसकाने की प्रक्रिया बेहद श्रद्धा और विधि-विधान के साथ संपन्न की जाती है, जिसमें हर व्यक्ति अपनी भूमिका निभाता है.
जड़ों से जोड़ने वाला मेला: यह मेला प्रवासी ग्रामीणों के लिए भी अपनी जड़ों से जुड़ने का महत्वपूर्ण अवसर है. लोक संगीत (ढोल-दमाऊं), पारंपरिक वेशभूषा और सामूहिक आयोजन के जरिए गांव की सांस्कृतिक पहचान को सहेजने का काम होता है. कठबद्दी के दौरान बोले जाने वाले जयकारे, बजने वाले वाद्ययंत्र और सामूहिकता का प्रदर्शन गढ़वाल की जीवंत संस्कृति को दर्शाते हैं.

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