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उत्तराखंड: पांच लोकसभा सीटों, फीका मतदान, नेता परेशान

Uttarakhand: Five Lok Sabha seats, lackluster voting, leaders worried

5 से 6 फीसदी कम मतदान का किसे मिलेगा लाभ

1 लाख 80 हजार युवा मतदाता बढ़े फिर भी कम मतदान

शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ अच्छा मतदान

देहरादून। उत्तराखंड की सभी पांच लोकसभा सीटों के लिए कल मतदान संपन्न हो चुका है। 2014 और 2019 की तुलना में 2024 के इस चुनाव में 5 से 6 फीसदी तक मतदान कम रहा है। इस कम मतदान का किसे फायदा होगा और किसे कितना नुकसान होने वाला है इसे लेकर तमाम तरह की चर्चाएं जारी है लेकिन भाजपा व कांग्रेस के द्वारा इस कम मतदान को लेकर अपने—अपने फायदे के दावे किए जा रहे हैं परंतु बेचैनी नेताओं के चेहरे पर साफ झलक रही है।

राजनीतिक दलों और प्रशासन द्वारा मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए तमाम कोशिशें की गई मगर यह कोशिशे धरी की धरी रह गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में मतदान 62.15 फीसदी रहा था तथा 2019 में मतदान का प्रतिशत 61.50 रहा था जिसमें कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं था लेकिन 2024 के वर्तमान चुनाव में यह मतदान 56 फीसदी तक भी नहीं पहुंच सका जो पिछले चुनावों की तुलना में 5 से 6 फीसदी तक कम है। 56 फीसदी कम मतदान निश्चित रूप से कोई कम चिंता का बात नहीं है। अगर यह मतदाताओं की संख्या के हिसाब से देखा जाए तो यह संख्या 3 लाख के आसपास मानी जा सकती है। इतनी बड़ी संख्या में जो लोग वोट डालने नहीं पहुंचे वह किस पार्टी के वोटर रहे होंगे और इसका पार्टी को कितना नुकसान होगा और दूसरी पार्टी को इसका कितना फायदा होगा इसका चुनाव परिणाम पर गंभीर असर देखने को मिल सकता है।

अभी सभी दल खास तौर से भाजपा और कांग्रेस इसकी समीक्षा करने में जुटे हुए हैं कि क्या कारण रहा इस बार मतदाताओं की इस उदासीनता का। अगर यह सत्ता से निराशा के कारण हुआ है तो इसका भाजपा को नुकसान होने की संभावना है। भाजपा की रैलियां में हमने जिस तरह की भीड़ उमड़ती देखी थी वह क्या था? क्या एक बूथ 10 यूथ वाली भाजपा अपने वोटरों को बूथ तक नहीं ला सकी। ऐसे तमाम सवाल उमड़—घुमड़ रहे हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य जो सामने आया है वह यह है कि मतदान को लेकर शहरी मतदाता ही उदासीन रहे हैं ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान औसतन अच्छा रहा है। इस बार 1 लाख 80 हजार नए वोटर सूची में शामिल हुए थे इसके बाद भी मतदान प्रतिशत में आई, इस कमी ने नेताओं को परेशान कर दिया है। इसका कितना नफा नुकसान होता है और किसे होता है इसका सही जवाब 4 जून की मतगणना के बाद ही मिल सकेगा।

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