Jhanda Mela 2024 : झंडेजी के आरोहण के साथ शुरू हुआ देहरादून का ऐतिहासिक झंडा मेला, देखें तस्वीरें
Jhanda Mela 2024 : वर्षों से चलता आ रहा झंडा मेले का आगाज झंडेजी के आरोहण के साथ शुरू हो गया है। यह 348वां ऐतिहासिक झंडा मेला है। आज से शुरू हुआ यह मेला 17 अप्रैल तक चलेगा।
Jhanda Mela 2024 : आज श्री गुरु राम राय दरबार साहिब में झंडे जी के आरोहण के दर्शन करने के लिए हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का सैलाब देखने को मिला है।
बता दे कि सुबह सात बजे से ही पूजा की प्रक्रिया शुरू हो गई थी और झंडे जी पर गिलाफ चढ़ाने का काम शुरू हो गया था।
इस बार पंजाब के होशियारपुर निवासी हरभजन सिंह पुत्र हरिसिंह को दर्शनी गिलाफ चढ़ाने का अवसर मिला है। यह मौका उन्हें 104 साल बाद मिला है।
Jhanda Mela 2024 : श्रीझंडेजी के आरोहण से पहले जगह-जगह बंट रहा था प्रसाद
श्री झंडेजी के आरोहण से पूर्व श्रीदरबार साहिब में और दून की सड़कों पर श्रद्धालु उमड़ पड़े। श्रीदरबार साहिब से स्कूल-कॉलेज की संगतें लगातार पहुंचती रहीं। सहारनपुर रोड पर कई जगह भंडारे भी आयोजित किए गए।
इनमें बड़ी संख्या में संगतों ने प्रसाद ग्रहण किया। मेले के दौरान श्री दरबार साहिब में आठ बड़े और चार छोटे लंगर लगाए गए हैं। इसके साथ ही श्री झंडेजी मेले के दौरान श्री दरबार साहिब परिसर में पांच एलईडी स्क्रीन लगाई गई है। यहां 42 सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं।
Jhanda Mela 2024 : गुरू राम राय जी का जीवन
गुरु राम राय जी महाराज सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय के पुत्र थे। गुरू हर राय जी का जन्म 16 जनवरी, 1630 को किरतपुर साहिब (वर्तमान में पंजाब का रूपनगर) में हुआ था।
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गुरु हर राय साहिब जी के दो पुत्र थे श्री राम राय और श्री हरकिशन साहिब जी (गुरु) थे। अपने अंतिम समय को नजदीक देखते हुए उन्होंने अपने सबसे छोटे पुत्र गुरु हरकिशन जी को ‘अष्टम नानक’ के रूप में स्थापित किया था।
वर्ष 1645 में पंजाब में जन्मे गुरु राम राय जी में बचपन से ही अलौकिक शक्तियां थीं। इन्होंने अल्पायु में ही असीम ज्ञान अर्जित कर लिया था। छोटी सी उम्र में वैराग्य धारण करने के बाद वह संगतों के साथ भ्रमण पर चल दिए थे।
भ्रमण के दौरान ही गुरू राम राय जी देहरादून आए थे। जब महाराज जी दून पहुंचे तो खुड़बुड़ा के पास उनके घोड़े का पैर जमीन में धंस गया और उन्होंने संगत को रुकने का आदेश दिया।
अपने तीर कमान से महाराज जी ने चारों दिशाओं में तीर चलाए और जहां तक तीर गए उतनी जमीन पर अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दिया।
उन्होंने यहां डेरा डाला इसलिए दून का नाम पहले डेरादून और फिर बाद में देहरादून पड़ गया। उसके बाद से आज तक उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के नाम से ही जानी जाती है।