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Sonam Wangchuk बस नमक और पानी पर जिंदा, 20 दिन से अनशन पर बैठे

सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक पिछले 20 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे है। बता दे कि सोनम वांग्चुक ने बीते बीस दिनों से केवल पानी और नमक पर जीवित है। आगे पढ़ते है क्या है पूरा मामला।

Sonam Wangchuk: सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक(Sonam Wangchuk News) के नेतृत्व में लद्दाख के कई समूह अपनी भूमि, संस्कृति के साथ-साथ अपने पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार से संवैधानिक उपाय की मांग कर रहे हैं। इस के साथ ही लद्दाख (Ladakh)को छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा उपाय दिए जाने की मांग कर रहे समूह को लीड कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक पिछले 20 दिनों से भूख हड़ताल पर है।

लद्दाख के साथ हो रहा कॉलोनी जैसा व्यवहार

सोनम वांगचुक के बीते रविवार ने एक वेबीनार का आयोजन किया था। जिसका आयोजन लद्दाख के मुद्दे पर एकजुटता व्यक्त करने के लिए किया गया था।  इस वेबिनार में नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स की नेता मेधा पाटकर और पर्यावरणविद् आशीष कोठारी सहित 350 से अधिक लोगों ने भाग लिया था। आइए जानते है कि सोनम वांगचुक ने अपने वेबीनार में किन बातों का जिक्र किया।

लोगों को संरक्षण की थी उम्मीद

सोनम वांगचुक ने अपने वेबीनार में कहा, “जब लद्दाख, जम्मू कश्मीर से अलग हुआ तो स्थानीय लोगों को अपने यूनिक पर्यावरण और जलवायु के संरक्षण की उम्मीद थी। सरकार ने विभिन्न बैठकों में इसका वादा किया था। यह वादे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, जनजातीय और कानून मंत्रालयों की बैठक तक सिमट कर रह गए हैं।”

‘सरकार नहीं कर रही अपने वादे पूरे’

आगे वांग्चुक ने कहा कि सरकार को उनके वादों के बारे में याद दिलाना अब अपराध बन गया है। विरोध करने पर लड़कों को उठाया जा रहा है, उन्हें हिरासत में लिया जा रहा है। यह अब केवल एक पर्यावरण आंदोलन नहीं है। यह एक सच्चाई और न्याय का मामला है। सरकार अपने वादे पूरे नहीं कर रही है।

‘लद्दाख एक उपनिवेश जैसा बन गया है’

वांगचुक ने कहा, “लद्दाख एक उपनिवेश जैसा बन गया है। दूर-दराज के कुछ आयुक्त जिनका स्थानीय लोगों या इकोलॉजी से कोई संबंध नहीं है, इस स्थान को चलाने का प्रयास कर रहे हैं। लद्दाख वास्तव में मंगल ग्रह की तरह है। मान लीजिए कि कोई लखनऊ से है, जो इस क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने की कोशिश कर रहा है। वे नहीं यहां के इकोलॉजी को नहीं समझेंगे और बड़ी गलतियां करेंगे और हमारी घाटियों, पहाड़ों को नुकसान पहुंचाएंगे।”

‘लद्दाख को बचाना देश के लिए महत्वपूर्ण’

वांगचुक ने कहा कि “हम देख रहे हैं कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में क्या हो रहा है। हम बस इकोलॉजिकल आपदा को रोकना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वह 21 दिन का अनशन कर रहे हैं।उसके बाद एक गुट अनशन करेगा। वांगचुक ने कहा, “महिलाएं 10 दिनों तक अनशन करेंगी, फिर युवा, फिर भिक्षु (बौद्ध भिक्षु), खानाबदोश. लद्दाख को बचाना देश के लिए महत्वपूर्ण है। एक तरफ पाकिस्तान है तो दूसरी तरफ चीन। यह एक संवेदनशील क्षेत्र है।”

बता दे कि सोनम वांग्चुक और समूह की मुख्य मांग लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना है, जिसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान है। यह स्थानीय समुदायों को इन क्षेत्रों के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अनुमति देता है।

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