उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने नैनीताल जेल में फैली अवस्थाओं और जेल के जर्जर भवन का स्वतः संज्ञान संबंधी जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा है कि जेल को शिफ्ट किया जाए या इसका सुधारीकरण किया जाय ? इसकी 10 दिन के भीतर स्थिति स्पष्ट करें।
मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने अधिवक्ता श्रुति जोशी को इस मामले में न्यायमित्र नियुक्त किया है। न्यायालय ने उनसे कहा है कि वो जेल का निरीक्षण करें। कैदियों से मिलकर उनकी समस्याओं से न्यायालय को अवगत कराएं।
जिससे कि जेल में बंद कैदी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। उन्हे रोजगारपरक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था पर सुझाव देने को कहा गया है, ताकि जेल से बाहर आने के बाद वे बेहतर जीवन जी सकें।
मामले के अनुसकर, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को नैनीताल जेल के निरीक्षण के दौरान जानकारी मिली कि 1906 में बना ये जेल काफी पुराना है, जो अब जर्जर हालत में है। जेल में क्षमता से अधिक कैदियों को रखा गया है। जेल में बंद कैदियों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। जेल भवन मुख्य सड़क से काफी दूर है जिससे कैदियों के बीमार पड़ने पर उन्हें समय पर हॉस्पिटल पहुंचाने में कई परेशानियां होती हैं।
निरीक्षण के दौरान पाया गया कि नैनीताल जेल भवन भूगर्भीय दृष्टि से भी संवेदनशील है, जो कभी भी भूस्खलन की जद में आ सकता है। जिसका उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया है