गोवेर्धन पूजा: जाने इसका महत्व और पूजा की विधि
भगवान श्री कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से ही बनाई जाती है गोवेर्धन पूजा। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 4 बजकर 18 मिनट से 8 बजकर 43 मिनट तक है।
जन की रक्षा करने
एक उंगली पर पहाड़ उठाया
उसी कन्हैया की याद दिलाने
गोवर्धन पूजा का पावन पर्व आया
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है। भगवान श्री कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से ही गोवेर्धन पूजा जो की अन्नकूट उत्सव के नाम से भी जनि जाती है, हर वर्ष दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। बृजवासियों के लिए यह पर्व बेहद ही खास है। इस दिन मंदिरो में कई प्रकार की खाद्य सामग्रियों का भगवान को 56 प्रकार का भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा इस वर्ष 2023 को 14 नवंबर को मनाई जाएगी और पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 4 बजकर 18 मिनट से 8 बजकर 43 मिनट तक है।
कथा :
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने बृजवासियों को बचाने के लिए गोवेर्धन पर्वत अपनी छोटी ऊँगली में 7 दिनों तक उठाए रखा। मुसळधार बारिश में करीब एक हफ्ते तक पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊँगली में उठा कर इंद्रदेव का मान-मर्दन किया और साथ ही सुदर्शन चक्र की मदद से बृजवासियों पर बारिश की एक भी बून्द नहीं गिरने दी, जिससे सभी बच्चे, बुजुर्ग, गोपियाँ, पशु- पक्षी सुखपूर्वक बारिश से बचे रहे।
इंद्र देव को जब ब्रम्हा जी ने बताया की धरती पर श्री कृष्ण का जन्म हो गया है और उनसे किसी भी प्रकार की लड़ाई उचित नहीं है तो भगवान इंद्र देव अपने किए कामो पर काफी लज्जित हुए और उन्होंने बगवान श्री कृष्ण से क्षमा याचना मांगी।
जब इंद्र देव ने वर्षा रोकी तो श्री कृष्ण ने 7 दिन बाद गोवेर्धन पर्वत को निचे रखा और सभी को अन्नकूट उत्सव मनाने को खा जिसके बाद से ही गोवेर्धन पूजा को अन्नकूट उत्सव के रूप में भी पहचाना गया।
गोवेर्धन पूजा की प्रक्रिया :
इस दिन गोबर से गोवेर्धन पर्वत बना उसके साथ ही श्री कृष्ण की मूर्ति व गाय , ग्वालो, चावल , फूल , दही तथा तेल का दीपक जला कर पूज और प्रक्रिमा करते है। साथ ही खा जाता है की इस दिन गाय को गुड़ चना खिलाने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते है।
कहा जाता है जब सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को नीचे उतरा था तो माँ यशोधा ने उनको एक दिन के 6 प्रकार के हिसाब से 7 दिन के 56 भोग खिलाए थे जिसके बाद से ही इस दिन भी बगवान को 56 भोग लगाने की प्रथा है।