“देव भूमि नाम है इसका, अपने पहाड़ों से तुम्हें परिचित कराऊं,आज सभी को देवभूमि का इतिहास बताऊं।” वर्षों के आंदोलन के बाद 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड(Uttarakhand movement) को देश के सत्ताइसवें राज्य का दर्जा मिला था। आज राज्य की स्थापना(Uttarakhand Foundation Day 2023) के 23 साल पूरे हो गए हैं। उत्तराखंड का वर्तमान जितना रोचक है उतना ही रोचक और महान उत्तराखंड का इतिहास(uttarakhand history) भी है। आज आप सभी पढेंगे उस समय की जानकारी जब उत्तराखंड का कोई अस्तित्व नहीं था और जानेंगे कि कैसे उत्तराखंड देश का 27वां राज्य बना।
उत्तराखंड राज्य का गठन
उत्तराखंड राज्य का गठन मुख्य तौर पर उत्तर-पश्चिम के कई भागों के साथ हिमालय पर्वत श्रृंखला के हिस्से को मिलाकर कर किया गया था। उस दौरान राज्य का नाम उत्तरांचल(Uttaranchal) था, जिसे स्थापना के कुछ साल बाद बदल कर उत्तराखंड किया गया। भारत में जब रियासतों का राजनीतिक एकीकरण किया जा रहा था उसी दौरान टिहरी गढ़वाल की रियासत भी भारत संघ में शामिल हुई थी। इसके बाद 1950 में भारतीय संविधान के साथ सयुक्त प्रांत का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया था।
क्यों शुरू हुई अलग राज्य बनाने की मांग?
अलग राज्य बनाने की मांग तब शुरू हुई जब देखा गया कि उस समय की तत्कालीन सरकार हिमालयी क्षेत्र के लोगों की हितों को पूरा करने और समझने में खरी नहीं उतरी थी। बुनियादी ढांचे में कमी, बेरोजगारी, मूल लोगों के प्रवास और विकास की कमी के कारण एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग तेज हो गई थी।
उत्तराखंड क्रांति दल का गठन
एक अलग राज्य की मांग के लिए उत्तराखंड क्रांति दल(Uttarakhand Kranti Dal) का गठन किया गया और एक अलग राज्य की मांग ने पूरे पहाड़ी क्षेत्र में एक आंदोलन का रूप लिया। इस संघर्ष के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब अलग राज्य की मांग करने के लिए चलाए गए आंदोलन ने एक हिंसक रूप ले लिया था।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान हुई हिंसक घटनाएं
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में बहुत सी हिंसक घटनाएं भी हुई। इसकी शुरुआत 1 सितंबर,1994 से खटीमा गोलीकांड से हुई थी। पुलिस द्वारा बिना चेतावनी के आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग की गई, जिसके परिणामस्वरूप सात आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गई थी।
इसके ठीक अगले ही दिन यानी 2 सितंबर को मसूरी गोली कांड हुआ, खटीमा गोलीकांड के विरोध में प्रशासन से बातचीत करने गई दो सगी बहनों को पुलिस ने झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी थी। इसका विरोध करने पर पुलिस द्वारा अंधाधुंध फायरिंग कर दी गई, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हुई और कई लोग घायल हुए थे।
इसके बाद आता है वह दिन जिसको उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिन माना जाता है, रामपुर तिराहा कांड में उस दिन की जैसी पुलिस बर्बरता की कार्रवाई इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिली थी। इस दिन मुजफ्फरनगर में प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर उत्तर प्रदेश की पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई थी और महिला आंदोलनकारियों के साथ बालातकार जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दिया गया था। ऐसी ही अलग अलग स्थान जैसे कोटद्वार, नैनीताल और श्रीनगर में आंदोलनकारियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था।
आंदोलनकारियों का हौसला कम नहीं हुआ
प्रदेश वासियों और उत्तराखंड क्रांति दल के द्वारा किये गये लगातार संघर्ष के बाद उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के माध्यम से 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल राज्य का गठन किया गया और ये भारत का 27वां राज्य बना।
इसके कुछ सालों के बाद 1 जनवरी 2007 में इस राज्य का नाम उत्तरांचल से बदलकर उत्तराखंड किया गया। राज्य के गठन से पहले इस पहाड़ी क्षेत्र को उत्तराखंड के नाम से जाना जाता था।
उत्तरांचल से उत्तराखंड कर राज्य ने अपना पुराना नाम पुनः प्राप्त किया। उत्तराखंड संस्कृत बोली का शब्द है जिसका अर्थ “उत्तरी क्षेत्र” है। उत्तराखंड को दो क्षेत्रों गढ़वाल और कुमाऊं में बांटा गया। उत्तराखंड की राज्य के रूप में स्थापना के बाद इस राज्य की राजधानी देहरादून को बनाया गया है।