5 राज्यों के विधानसभा चुनाव, क्या होंगी राजनीतिक दलों की चुनौतियां और मुद्दे
पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों पर सभी राजनीतिक दलों का बड़ा दांव: लगा हुआ है । 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले यह अंतिम विधानसभा चुनाव हैं जो एक तरफ केंद्र में सत्तारूढ़ दल भाजपा की तो वही दूसरी तरफ विपक्ष के I.N.D.I.A गठबंधन की नीतियों और फैसलों पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है ।
पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों की रणभेरी का बिगुल बज चुका है । सोमवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा पाँच राज्यों में चुनाव की घोषणा के बाद से ही इन राज्यों में राजनीतिक दलों के बीच चुनाव को लेकर सरगर्मियाँ तेज हो गई है । ईसीआई की घोषणा के बाद से ही पांचों राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में आचार संहिता भी लागू हो गई है । इन चुनावों के नतीजे पर उत्सुकता से नजर रखी जाएगी क्योंकि इन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले सेमीफाइनल मुकाबले की तरह भी देखा जा रहा है ।
चुनाव कार्यक्रम
40 विधानसभा सीटों वाले पांच राज्यों में से सबसे छोटे मिजोरम में 7 नवंबर को चुनाव होंगे। 90 सदस्यीय विधानसभा वाले छत्तीसगढ़ में 7 और 17 नवंबर को दो चरणों में चुनाव होंगे। मध्य प्रदेश (230 सीट), राजस्थान (200 सीट) और तेलंगाना (119 सीट) में क्रमशः 17, 23 और 30 नवंबर को मतदान होगा। वोटों की गिनती 3 दिसंबर को होगी।
पार्टी नेताओं के बयान
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी की संभावनाओं को लेकर भरोसा जताया है और सभी पांच राज्यों में सरकार बनाने का दावा किया है। दूसरी ओर, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने घोषणा की कि भाजपा और उसके साथियों की विदाई का उद्घोष हो गया है।
मतदान का महत्व
पांच राज्यों के चुनावों को व्यापक रूप से अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए एक सेमीफाइनल के रूप में भी देखा जा रहा है। इससे गठबंधन की राजनीति और उनके नेतृत्व निर्णयों के बारे में भी काफी कुछ साफ होने के आसार है। पांच में से तीन राज्यों – राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ – में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच लगभग द्विध्रुवीय मुकाबला होगा, जिसमें इन दोनों राष्ट्रीय दलों की ताकत का परीक्षण होगा ।
हालाँकि, पिछले नतीजों से पता चला है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे जरूरी नहीं कि लोकसभा चुनावों पर भी प्रभाव डाले । उदाहरण के लिए, 2018 में, कांग्रेस ने इसमें से तीन राज्यों, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की थी , लेकिन छह महीने बाद भाजपा ने इस राज्यों की 65 लोकसभा सीटों में से 62 सीटों पर कब्जा कर लिया था।
I.N.D.I.A गठबंधन की भूमिका
ये चुनाव नवगठित भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन (INDIA) , जो कि भाजपा को चुनौती देने के लिए इस साल की शुरुआत में बना 26 विपक्षी दलों का गठबंधन है, के लिए भी पहली बड़ी चुनावी परीक्षा पेश करेगा । यह देखना होगा की इस चुनावी चुनौती के लिए विपक्षी गुट अपने संदेश, समन्वय और नेतृत्व का सत्तारूढ़ दल भाजपा को नुकसान पहुचाने के लिए किस तरह से इस्तेमाल करता है ।
जाति और अन्य कारण
यह चुनाव बिहार सरकार द्वारा करवाए गए जाति सर्वेक्षण जारी करने के कुछ सप्ताह बाद हो रहा है । इस सर्वेक्षण के अनुसार पिछड़ा समुदाय बिहार राज्य के लगभग दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। सर्वेक्षण के बाद चुनावी कहानी को एक नई गति मिल सकती है । चुनावों में जातिवाद का मुद्दा हावी रहने से इनकार नहीं किया जा सकता, जिसमें जाति को चुनावी चर्चा के मूल में लाने की क्षमता है।
इस बीच विपक्ष ने राष्ट्रव्यापी जातिगत जनगणना को एक मुख्य मांग बना दिया है । उनको उम्मीद है कि जातिगत जनगणना की मांग हाशिए पर मौजूद जातियों के बीच भाजपा के इंद्रधनुषी हिंदू गठबंधन को विभाजित कर सकती है। पांच राज्यों के चुनाव यह देखने के लिए जमीनी स्तर का पहला परीक्षण होंगे कि इस बात में कुछ वास्तविकता है भी या नहीं।
आर्थिक और सामाजिक कारण
ये चुनाव जी20 शिखर सम्मेलन के बाद पहला चुनाव है। यह दिखाएगा कि बढ़ती महंगाई के बारे में गुस्से को कम करने के सरकार के प्रयास किस हद तक काम कर रहे हैं – हाल के हफ्तों में, सरकार ने महंगाई को कम करने के लिए कई घोषणाएँ की है जिसमें गैस सिलेंडर पर 200 रुपये की सब्सिडी भी शामिल है ।
संसद द्वारा ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पारित करने के बाद से भी यह पहला विधानसभा चुनाव है । इस आरक्षण ने राष्ट्रीय और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी है । हालाँकि यह अगले आम चुनाव से पहले लागू नहीं होगा, लेकिन सबका ध्यान इस बात पर होगा कि राजनीतिक दल पर्याप्त महिला उम्मीदवारों को नामांकित करते हैं या नहीं।
क्षेत्रीय गतिशीलता
मिजोरम के पड़ोसी राज्य मणिपुर में उपजा जातीय तनाव अपने चरम पर है जो मिजोरम के चुनावों पर भी अपना असर डाल सकता है । छत्तीसगढ़, जहां कांग्रेस सत्ता में है, यहां आदिवासी वोटों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों में निर्णायक मुकाबला होने की उम्मीद है । मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई होगी, जिसमें सत्ता विरोधी लहर एक प्रमुख कारण बन कर उभर सकती है।
हिंदी हार्टलैंड का महत्व
ये चुनाव विशेष रूप से हिंदी भाषी राज्यों में बहुत महत्व रखते हैं, जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। हिंदी पट्टी में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार जैसे राज्य शामिल हैं, साथ ही राजस्थान और हरियाणा को भी इस राजनीतिक परिदृश्य का हिस्सा माना जाता है। ये राज्य दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण युद्धक्षेत्र हैं, और यहाँ के परिणाम क्षेत्रीय राजनीति की वर्तमान स्थिति को समझने में सहायक साबित होंगे।
इन पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव राजनीतिक दलों और गठबंधनों के लिए एक लिटमस टेस्ट के रूप में काम करेंगे साथ ही 2024 के आम चुनावों के लिए मंच तैयार करने में भी सहायक होंगे। इस चुनावों के नतीजे न केवल इन राज्यों के तत्काल शासन का निर्धारण करेंगे बल्कि आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति की दिशा भी तय करेंगे।