भारतीय राजनीति में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी है। संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र की शुरुआत के बाद कल देर रात खत्म हुई एक महत्वपूर्ण कैबिनेट बैठक में यह ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
महिला आरक्षण विधेयक, एक लंबे समय से विवादित विधेयक रहा है , जिसमें महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं दोनों में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है। विशेष रूप से, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए निर्धारित सीटों में से एक तिहाई सीटें इन समुदायों की महिलाओं को भी आवंटित करने का प्रस्ताव इस विधेयक में है। इन आरक्षित सीटों का आवंटन राज्य या केंद्र शासित प्रदेशो के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के बीच “रोटैशनल बैसिस” (Rotational basis) पर होगा ।
महिला आरक्षण विधेयक बिल ने अपनी लंबी संसदीय यात्रा के दौरान कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। आखिरी बार यह विधेयक साल 2010 में राज्यसभा में पारित हो गया था किन्तु तत्कालीन यूपीए सरकार कुछ दलों के विरोध के चलते इसको लोकसभा में पारित नहीं करवा पाई थी , जिसकी वजह से यह रद्द हो गया था ।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में, लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15 प्रतिशत से भी कम है । लोकसभा के कुल 543 सांसदों में से 78 महिला सांसद है । पिछले साल दिसंबर में सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार राज्यसभा में, यह आंकड़ा लगभग 14 प्रतिशत है ।
भारत की कई राज्य विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधित्व का स्तर चिंताजनक है । आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी जैसे राज्यों की विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से भी कम है।
इस बीच, दिसंबर 2022 के सरकारी आंकड़ों के आधार पर बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में लगभग 10-12 प्रतिशत महिला विधायक हैं। इसके विपरीत छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड में यह आकड़ा क्रमशः 14.44 प्रतिशत, 13.7 प्रतिशत और 12.35 है और यह राज्य महिला विधायक प्रतिशत के मामले में सबसे आगे हैं ।
उत्तराखंड की बात करे तो यहाँ कुल 70 विधायकों में से केवल 8 महिला विधायक है जिनका प्रतिशत 11.42 है ।
वर्ल्ड बैंक के डाटा के अनुसार भारत की कुल आबादी में 51.6 प्रतिशत पुरुष और 48.4 प्रतिशत महिलायें है यानि देश की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है । इस आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने के लिए इन्ही के बीच में से जनप्रतिनिधियों की भी आवश्यकता है ।महिला आरक्षण विधेयक इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है जो भविष्य में लैंगिक समानता के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता है ।