…तो इसलिए इस झूले को कहा जाता है लक्ष्मण झूला
ऋषिकेश का लक्ष्मण झूला,ये नाम तो अपने सुना ही होगा, अगर नहीं सुना, तो चलिए! आज हम आपको बताते हैं कि गंगा नदी पर ये प्रसिद्ध पुल आखिर लक्ष्मण जी के नाम पे ही क्यूँ पड़ा?
देवभूमि उत्तराखंड के खूबसूरत वादियों और गंगा नदी के तट पर बसा एक शहर है, ऋषिकेश और इसी शहर में स्थित है विश्व प्रसिद्द लक्ष्मण झुला, जोकि 450 फीट लंबा है और नदी से 70 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जो दो महत्वपूर्ण गांवों – टिहरी गढ़वाल जिले के तपोवन और पौड़ी गढ़वाल जिले के जोंक को आपस में जोड़ता है। करीबन 100 साल पुराना लक्ष्मण झूला अपनी हिंदू पौराणिक कथाओं की वजह से दूर-दूर से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
बात अगर इसकी मान्यताओं की करें तो हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे गंगा नदी को पार किया था। और यही वजह है कि कि इस पुल को लक्ष्मण झूला के नाम से पुकारा जाता है। और इस पुल के पश्चिमी किनारे पर लक्ष्मण जी का मंदिर भी है।
बात अगर इसके इतिहास कि करें तो 1923 में इस पुल की नींव ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान पड़ी थी। लेकिन तेज बाढ़ के चलते साल 1924 में इसकी नींव ढह गई थी। इसके बाद 1927 में एक बार फिर इसकी नींव रखी गई, और तीन साल बाद 11 अप्रैल 1930 में यह पुल बनकर तैयार हो गया था।
ऐसा बताया जाता है कि इस पुल का निर्माण ब्रिटिश सरकार की देख-रेख में हुआ था। लेकिन अंग्रजों से भी पहले स्वामी विशुदानंद की प्रेरणा से कलकत्ता के सेठ सूरजम ने यहां 1889 में लोहे की तारों से एक मजबूत पुल बनवाया था। और दुर्भाग्य से यह पुल 1924 में बाढ़ में बह गया था, इसके बाद से ही ब्रिटिश सरकार ने नए सिरे से इसका निर्माण करवाया था।
और अब देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग इस झूले का आनंद लेने ऋषिकेश आते हैं। यहाँ की सुन्दरता और ठंडी ठंडी हवाएं सबका मन मोह लेती हैं।