उत्तराखंड : कौन थे उत्तराखंड के पहले सबसे अमीर इंसान, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड | सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत में ऐसे कई करोड़पति रहे जिनको आज तक याद किया जाता है। उत्तराखंड में भी ऐसे कई करोड़पति व्यक्ति थे जिन्हें उस समय देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में गिना जाता है। आज हम बात कर रहे है उत्तराखंड के सबसे पहले करोड़पति व्यक्ति राय सिंह बिष्ट जी की। राय सिंह बिष्ट पहले ऐसे अरबपति थे जो 1930 से 1940 के दशक के सबसे अमीर व्यक्ति थे। उस समय शिक्षा-दीक्षा की कमी होने के बावजूद भी वे इतने अमीर कैसे हुए ? राय सिंह बिष्ट इतने पड़े लिखे नहीं थे लेकिन उन्होंने अपनी व्यापारिक बुद्धि के इस्तेमाल से खुद को उत्तराखंड का सबसे अमीर व्यक्ति सिद्ध कर दिया।
राय सिंह बिष्ट के बाद उनके दो पुत्र देव सिंह और चंचल सिंह ने अपने पिता के व्यापार कार्य को संभाला और अपने पिता के बाद ये परिवार उत्तराखंड के सबसे अमीर परिवार बना। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना को घी की आवश्यकता थी और राय सिंह बिष्ट जी ने इस समस्या के समाधान के लिए नेपाल से आने घी का डिपो स्थापित किया और सेना को घी की सुविधा प्रदान की। व्यापार के तेजी से बढ़ने के बाद राय सिंह बिष्ट ने आसपास के अन्य क्षेत्रों में भी घी का व्यापार शुरू और धीरे-धीरे वे उत्तराखंड के सबसे बड़े घी के ठेकेदार बन गए।
राय सिंह बिष्ट जी के बाद उनके पुत्रों ने उनका व्यापार आगे बढ़ाया। देव सिंह के पुत्र दान सिंह ने उत्तराखंड के लगभग 22 गांव और बेरीनाग के विस्तृत चाय के बागान को भी खरीद लिया था। उनके बागानों में उत्तम किस्म की चाय का उत्पादन किया जाता था। चाय का निर्यात देश-विदेशों में किया जाता था जिसका साल का टर्नओवर करोड़ों में होता था। चाय के व्यापार के अलावा दान सिंह ने लकड़ियों का व्यापार करना भी शुरू कर दिया और उनके लकड़ियों का व्यापार न केवल भारत बल्कि नेपाल, भूटान और असम तक फैला हुआ था।
दान सिंह बिष्ट ने अपने जीवनकाल में इतना अधिक पैसा कमा लिया थी कि उन्होंने उत्तराखंड के कई क्षेत्रों को दान में दे दिया था। इसके अलावा उन्होंने कई स्कूलों और विश्वविद्यालयों का भी निर्माण करवाया जिनमें से नैनीताल का डीएसबी कैम्पस और पिथौरागढ़ का स्कूल एक है। दान सिंह बिष्ट का संपूर्ण परिवार व्यापार के कार्यों में लग गया जिसके बाद ये परिवार इतना अमीर हो गया था कि इन्होंने संपूर्ण पिथौरागढ़ को खरीद लिया था। लेकिन आजादी के बाद उनकी यह संपत्ति रिश्तेदारों के साथ-साथ जनहित कार्यों में बंट गयी थी। यही नहीं बल्कि इस परिवार के इतने मालदार होने पर उस समय प्रचलित फिल्म मालदार की तुलना इस परिवार से ही की गयी थी।