गढ़वाल विश्वविद्यालय से एक आग्रह
डॉ योगेश धस्माना
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को डी लिट की उपाधि देकर प्रशंसनीय कार्य किया है I 1973 में गढ़वाल कुमाऊं विश्वविद्यालय की स्थापना किस समय कहा गया था कि , यह विश्वविद्यालय डिग्री प्रदान करने वाले न बने I बल्कि क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिकी को मजबूत करने की दिशा में , अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं I लोक कलाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए विश्वविद्यालय को चाहिए कि , वे नरेंद्र सिंह नेगी सहित गंभीर चिंतकों को विजिटिंग प्रोफेसर बनाकर , इस कार्य में शोधार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान कर विलुप्त होती लोक संस्कृति के साहित्य और वाद्य यंत्रों को बचाने के लिए आगे आएं I
इसके लिए विश्वविद्यालय को यह भी चाहिए कि वह उत्तराखंड लोक सेवा आयोग सहित प्रतियोगी परीक्षाओं में लोक भाषाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर अपनी संस्तुति दें I
असम राज्य के गुवाहाटी विश्वविद्यालय में भूपेन हजारीका की स्मृति में एक लोक कला संग्रहालय स्थापित किया हैI क्या हमारे विश्वविद्यालय के कुलपति भी इस तरह का कदम उठाकर , पहाड़ के लोक गायकों के साहित्य को एक जगह , संग्रहालय के रूप में स्थापित करने का निर्णय लेंगे ? क्या विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद और साथ में अकादमिक कौंसिल , गोरदा , गुमानी , चंद्र कुंवर ,डॉक्टर पीतांबर दत्त बड़थ्वाल , कन्हैयालाल डेंड्रियाल , सुमित्रानंदन पंत , मौलाराम, श्रीदेव सुमन , भजन सिंह , श्रीमन , आदि के साहित्य लोक गाथाओं के संरक्षण को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएगी ? या फिर मात्र डिग्री बांधकर उच्च शिक्षा की इतिश्री कर देगी ? हमारा विश्वविद्यालय से आग्रह है कि वह लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को आजीवन विजिटिंग प्रोफेसर बनाकर , इस दिशा में उनका वास्तविक सम्मान करने के लिए आगे आए I