देश

शिंदे सरकार का संकट : 72 घंटे में 7 किसानों ने कर्ज से परेशान होकर दे दी जान

यवतमाल, 20 सितंबर (आईएएनएस)। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में पिछले 72 घंटे में सात किसानों ने आत्महत्या कर ली है। इस घटना से पूरा महाराष्ट्र हिल गया है।

विदर्भ जन आंदोलन समिति के अध्यक्ष और शिवसेना (यूबीटी) नेता किशोर तिवारी ने कहा, ”पिछले तीन दिनों से भी कम समय में यवतमाल से 6 और वर्धा से 1 किसान के आत्महत्या की खबर आई है।”

तिवारी ने कहा, आत्महत्या करने वालों में यवतमाल में हिवारी के प्रवीण काले, खिडकी के ट्रैबैंक केरम, शिवनी के मारोती चव्हाण, अर्जुन के गजानंद शिंदे, बनेगांव के तेवीचंद राठोस, जामवाडी के नितिन पाणे और वर्धा के रन्तापुर के दिनेश मडावी किसान शामिल हैं।

तिवारी ने कहा कि इनमें से 6 आत्महत्याएं पिछले 48 घंटों में और एक आत्महत्या एक दिन पहले रविवार को हुई थी। उनमें से अधिकांश समाज के वंचित वर्गों से हैं और उन्होंने भारी कर्ज के बोझ, फसल की बर्बादी और राज्य सरकार से बहुत कम या कोई मदद नहीं मिलने के कारण यह कदम उठाया।

वीजेएएस नेता ने कहा कि लेटेस्ट मौतों के साथ जनवरी 2023 से राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढ़कर 1586 हो गई है। उन्होंने आगे कहा कि विदर्भ जैसे छोटे से क्षेत्र से हर रोज एक-दो किसानों की आत्महत्या की खबरें मिल रही हैं।

अन्य राज्यों की स्थिति के बारे में शायद ही पता चले। फिर भी, केंद्र सरकार भविष्य में भारत को पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के बड़े-बड़े दावे कर रही है… यह कैसे संभव है।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार वास्तव में मानसून की बेरुखी के कारण देश के बड़े हिस्से में व्याप्त कृषि संकट को लेकर गंभीर है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद के चल रहे विशेष सत्र में विदर्भ के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए।

केंद्र और राज्य सरकार के दावों के बावजूद लागत, फसल और ऋण के मुख्य मुद्दों को संबोधित नहीं किया गया है, इस प्रकार किसानों को अपना जीवन समाप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। राहत पैकेजों की घोषणा बड़े जोर-शोर से की जाती है, लेकिन वे ध्वस्त हो चुकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को राहत देने में विफल रहे।

जलवायु परिवर्तन की जटिलताओं के साथ, इस वर्ष असमान मानसून के कारण सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है, जिससे महाराष्ट्र के आसपास के कम से कम 10 जिलों में मुख्य नकदी फसल कपास की मांग बहुत कम हो गई है, इनपुट लागत में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा कम ऋण प्रदान किया जाता है।

उन्होंने कहा कि इन सभी ने मिलकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगा दिया है, साथ ही क्षेत्र में टिकाऊ खाद्य दलहन और तिलहन फसलों को बढ़ावा देने में सरकार की विफलता के कारण किसानों के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

–आईएएनएस

एफजेड

Show More

Related Articles

Back to top button