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महाराष्ट्र के 14 ‘मराठा सैन्य वास्तुकला’ किलों को यूनेस्को के टैग का इंतजार

मुंबई, 24 सितंबर (आईएएनएस)। देश छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ मना रहा है, वहीं महाराष्ट्र, 14 मराठा किलों के लिए यूनेस्को के विश्व विरासत टैग का इंतजार कर रहा है, जो राज्य के हरे-भरे पश्चिमी घाट और सुरम्य तटीय कोंकण क्षेत्र में हैं।

2012 से पश्चिमी घाट यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है जो एक लंबा, हरा, पहाड़ी मार्ग है जो दक्षिण गुजरात से उत्तरी केरल तक फैला हुआ है, जिसका प्रमुख भाग महाराष्ट्र और कर्नाटक में पड़ता है।

विशेषज्ञ अब मराठा सैन्य वास्तुकला के प्रतीक 14 किलों को विरासत बनाने का काम कर रहे है, जो अप्रैल 2021 से पहले ही यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल हो चुके हैं और अब डब्ल्यूएच साइट के रूप में औपचारिक मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं।

उन किलों में रायगढ़ (मराठा साम्राज्य की राजधानी), शिवनेरी, राजगढ़, तोरणा, लोहागढ़ (सभी पुणे), सालहेर, अंकाई-टंकाई, मुल्हेर (सभी नासिक), रंगना (कोल्हापुर), अलीबाग, पद्मदुर्ग, खंडेरी (रायगढ़), सिंधुदुर्ग (सिंधुदुर्ग जिला), और सुवर्णदुर्ग (रत्नागिरि) शामिल हैं। वहीं कुछ 720 किलोमीटर लंबी तटरेखा, अपतटीय या पश्चिमी घाट में स्थित हैं, जिनमें से अधिकांश अभी भी ऊंचे और भव्य हैं।

आंध्र प्रदेश सरकार विरासत समिति के सदस्य और जलगांव (महाराष्ट्र) में हेरिटेज फाउंडेशन के संस्थापक भुजंग बोबडे ने कहा, ”इन किलों को यूनेस्को की अंतिम हरी झंडी मिलने के बाद इन्हें सम्मान मिलेगा, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को भारी बढ़ावा मिलेगा, उनके उचित संरक्षण प्रयासों का मार्ग प्रशस्त होगा, स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा और राज्य के लिए राजस्व उत्पन्न होगा।”

अरब सागर की तटरेखा और पश्चिमी घाट के साथ-साथ मराठवाड़ा तक फैली सह्याद्री पर्वतमाला, गुरिल्ला युद्ध रणनीति के लिए आदर्श स्थान थी, और मध्यकालीन काल में, अरब, तुर्क, यूरोपीय, अफ्रीकी कोंकण क्षेत्र में दिखाई दिए और भीतरी इलाकों की ओर बढ़ गए।

उस समय शिवाजी महाराज, जिन्हें बाद में छत्रपति के रूप में ताज पहनाया गया, उन्‍होंने स्वराज्य (स्व-शासन) की स्थापना की, और शक्तिशाली मुगल साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी। यह साम्राज्य आधुनिक उज्बेकिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और जिसने समकालीन वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 20 प्रतिशत नियंत्रित किया।

मुगल सम्राट औरंगजेब प्रायद्वीपीय भारत तक अपना शासन बढ़ाने के लिए दक्षिणी भारतीय राज्यों पर कब्जा करने के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन मराठा साम्राज्य ने दक्षिण में उसके बुलडोजर मार्च का डट कर मुकाबला किया।

इसका श्रेय पहाड़ी इलाकों के सर्वोत्तम उपयोग, समतल भूमि, पहाड़ियों और लंबे समुद्री तटों पर किलों के निर्माण को दिया गया, जिसने मुगल साम्राज्य के आगमन को रोका।

1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की। उनकी मृत्यु (1680) के 75 वर्षों के भीतर, इसने सर्वोत्तम राजनीतिक और क्षेत्रीय परिणामों के साथ गुरिल्ला युद्ध से भारतीय उपमहाद्वीप के एक तिहाई हिस्से को कवर कर लिया था।

मराठा बाद के ब्रिटिश साम्राज्य को दूर रखने में भी सफल रहे, लेकिन विभिन्न एंग्लो-मराठा युद्धों (भीमा-कोरेगांव युद्ध सहित) के माध्यम से उन पर हावी होने के बाद, ब्रिटिश, पुर्तगाली और फ्रांसीसी इस क्षेत्र पर अपना झंडा फहराने में कामयाब रहे।

बोबडे ने कहा कि ये मराठा किले उस क्षेत्र के राजनीतिक, सैन्य और स्थापत्य इतिहास में अत्यधिक महत्व रखते हैं।

पुरातत्व निदेशालय और महाराष्ट्र सरकार ने 14 अद्वितीय मराठा किलों की सूची को अंतिम रूप दिया था जो अब यूनेस्को की अस्थायी सूची में हैं।

बोबडे ने बताया कि पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद, यूनेस्को इन्‍हें विश्व धरोहर घोषित करता है, इसमें आम तौर पर कम से कम पांच साल लगते हैं।

हेरिटेज फाउंडेशन के माध्यम से बोबडे ने 42 देशों के 98,000 से अधिक लोगों को 40 क्षेत्रों में विरासत से संबंधित अल्पकालिक प्रमाणपत्र पाठ्यक्रमों में एक सप्ताह से एक वर्ष की अवधि में प्रशिक्षित किया है, जो इस क्षेत्र में आकर्षक करियर के विकल्प खोलते हैं। यह विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।

बोबडे ने कहा, “मैं कला, वास्तुकला, विरासत, संरक्षण, संगीत, नृत्य, संग्रहालय, चित्र, पेंटिंग आदि के विभिन्न पहलुओं पर विशिष्ट पाठ्यक्रमों के साथ भविष्य के कार्यबल का निर्माण कर रहा हूं, जिनमें से अधिकांश देश और विदेश में कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं, शिक्षार्थियों को इस प्रकार सशक्त बनाया जा रहा है, जिससे उन्‍हें अलग-अलग करियर तलाशने में मदद मिलेगी।

–आईएएनएस

एमकेएस/एसकेपी

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