बीआरआई पर भारत के विरोध का कारण ‘चीन-पाक आर्थिक कॉरिडोर’
नई दिल्ली, 16 सितम्बर (आईएएनएस)। इटली ने हाल ही में संपन्न जी20 दिल्ली शिखर सम्मेलन के दौरान स्पष्ट रूप से संकेत दिया था कि वह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को छोड़ने की योजना बना रहा है।
हालांकि, यह कई मध्य एशियाई और यहां तक कि यूरोपीय देशों (जैसे इटली) से बहुत अधिक समर्थन हासिल करने में कामयाब रहा, जिन्होंने इसके माध्यम से एशिया में अपने व्यापार को बढ़ावा देने की संभावना देखी, भारत इस परियोजना का लंबे समय से विरोधी रहा है।
बीआरआई पर भारत के विरोध का मुख्य जोर यह रहा है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) जो बीआरआई का हिस्सा है, उसकी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन है क्योंकि इसमें वह भूमि भी शामिल है जिस पर भारत अपना दावा करता है।
भारत ने इस पहल में पारदर्शिता और खुलेपन की कमी की ओर भी इशारा किया है। भारत बीआरआई की अवधारणा का विरोध कर रहा है, क्योंकि यह 2017 में वास्तविक कार्यान्वयन के तहत आया था।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहली बार 2013 में इसकी संकल्पना की थी और इसे आर्थिक विकास और साझेदारी को बढ़ावा देने की पहल के रूप में पेश किया गया था। जिससे इसके लिए साइन अप करने वाले सभी मेजबान देशों को लाभ होगा, जबकि कूटनीतिक रूप से इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को गहरा करना था।
आधिकारिक तौर पर बीआरआई एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग में सुधार पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य भूमि के साथ-साथ समुद्री मार्गों को भी बढ़ाना है। कई एससीओ सदस्य देश भी इस पहल का समर्थन करते हैं।
हालांकि भारत ने हमेशा कहा है कि सीपीईसी जो बीआरआई का एक हिस्सा है, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरता है। यही कारण है कि यह भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन है।
पिछले कुछ वर्षों में एससीओ बैठकों के बाद जारी सभी संयुक्त घोषणापत्रों में, भारत ने बीआरआई का विरोध किया है, जबकि अन्य सदस्य देशों ने इसका समर्थन किया है।
–आईएएनएस
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